'बुर्के पर प्रतिबंध' के मुद्दे पर संभलकर बोल रही है BJP, क्या है रणनीति?

व्यक्तिगत आजादी का मामला बताया
बीजेपी नेता पियूष गोयल ने शुक्रवार को इस पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि बुर्का पहनना या न पहनना किसी मुस्लिम महिला की व्यक्तिगत आजादी का मामला है। वह इसे पहनना चाहती है या नहीं, इस पर उसका फैसला अंतिम होना चाहिए। लेकिन बीजेपी तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की आजादी के नाम पर बहुत सक्रिय थी तो इस मुद्दे पर क्यों नहीं, इस सवाल पर बीजेपी नेता ने कहा कि तीन तलाक की वजह से एक मुस्लिम महिला और उसके पूरे परिवार को परेशानी का सामना करना पड़ता है, बच्चों का भविष्य खराब हो जाता है, जबकि कोई ड्रेस पहनना या न पहनना उसकी अपनी मर्जी का विषय है।
बीजेपी को क्या डर?
बुर्के के मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी को सीधे चुनाव का असर माना जा रहा है। दरअसल अभी भी तीन महत्त्वपूर्ण चरणों के चुनाव बाकी हैं। इसमें यूपी के पूर्वांचल की महत्त्वपूर्ण सीटों के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों की उन सीटों पर मतदान होना है जिसमें मुस्लिम मतदाता बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भाजपा इस मौके पर कोई भी ऐसा बयान देने से बचना चाहती है जिससे इन वोटों के ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिले।
बीजेपी के एक नेता का कहना है कि पार्टी अभी भी यह मानकर चल रही है कि तीन तलाक पर उसके स्टैंड के कारण मुस्लिम महिलाओं का एक वर्ग उसे वोट कर रहा है। ऐसे में अगर वह कोई ऐसा स्टैंड लेती है जिसे विपक्ष मुस्लिम विरोधी बताने में सफल होता है तो इससे पार्टी को नुकसान होने की संभावना है। यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व की तरफ से इस मुद्दे पर बहुत सतर्क प्रतिक्रिया देने को कहा गया है।
क्यों गरमाया मामला
श्रीलंका में 21 अप्रैल को हुए बम धमाकों में लगभग ढाई सौ लोगों की जान चली गई। एहतियात के तौर पर श्रीलंका ने अपने यहां बुर्के पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कर लिया। श्रीलंका के इस फैसले से अति उत्साह में आते हुए एनडीए में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने भारत में भी बुर्के पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर दी। हालांकि शिवसेना ने दूसरे ही दिन अपने स्टैंड से यू टर्न ले लिया लेकिन इसी बीच केरल के एक इस्लामिक शिक्षण संस्थान ने अपने कैंपस में महिला छात्रों को बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया।
इसके बाद एक बहस चल पड़ी कि क्या भारत में भी बुर्के पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए? मुस्लिम नेताओं-विद्वानों की तरफ से इस पर तरह-तरह के बयान आने लगे। जावेद अख्तर और करणी सेना के बयानों ने इस विवाद को और बढ़ाने का काम कर दिया।