भारत राजनीती : रविकिशन बाबू बॉडी बनाओ, प्रियंका गांधी ने खेला सांप से खेल

अब रविकिशन दांव पर हैं। रविकिशन इन दिनों हर रोज 11 बजे नहा-धोकर, जिम वगैरह करके, सज-धज कर, डीओ, शैंपू, बॉडी स्प्रे के साथ चुनाव प्रचार में निकलते हैं। पांच सितारा होटल में उनका दफ्तर, कार्यालय सब है। दो-तीन सूईट की शान-शौकत है। बताते हैं, यह सब योगी को भी अच्छा नहीं लग रहा है, लेकिन अब सीएम हैं। कुछ मजबूरी भी है।
मायावती से कौन डरता है?
मजबूत वोट बैंक के सहारे राजनीति में बसपा सुप्रीमों मायावती ने उ.प्र. में एक दबदबा बना रखा है। आजकल वह कांग्रेस को डरा रही हैं। एक बार म.प्र. सरकार को समर्थन वापसी की धमकी दे चुकी हैं तो अब कांग्रेस के चेतावनी दे रही हैं। उ.प्र. कांग्रेस के एक पूर्व प्रभारी का कहना है कि मायावती की चेतावनी पर कांग्रेस कोई प्रतिक्रिया नहीं देगी। हम उनका आदर करते हैं। पूर्व प्रभारी का कहना है कि हम मायावती का आदर करते हैं, लेकिन उनसे कांग्रेस पार्टी नहीं डरती।
कांग्रेस पार्टी से बसपा की नेता डरती हैं। आप देखिए, नसीमुद्दी सिद्दीकी कांग्रेस में आए, टिकट मिला और बसपा नेता का पारा चढ़ गया। प्रियंका गांधी मेरठ के अस्पताल में भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर से मिलने गई और मायावती का गुस्सा आसमान पर चला गया। म.प्र. में उनका प्रत्याशी कांग्रेसी हो गया तो बसपा नेता ने डराना शुरू कर दिया। सूत्र का कहना है कि अभी बसपा प्रमुख का गुस्सा और बढ़ेगा, क्योंकि कांग्रेस असली आपरेशन उ.प्र. अभी बाकी है।
शीला ने पलट दिया माकन का गेम
नया नौ दिन, पुराना सौ दिन। दिल्ली पर कहावत सटीक बैठ रही है। अनुभवी शीला ने चुपचाप युवा अजय माकन की राजनीति को चित कर दिया। अब माकन को अपनी नई दिल्ली की सीट पर विजयश्री पाना थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है। भाजपा ने माकन के मुकाबले में मीनाक्षी लेखी और आम आदमी ने ब्रिजेश गोयल को उतारा है। जबकि शीला उत्तर-पूर्वी सीट पर मुकाबले में मनोज तिवारी और दिलीप पांडे के होने के बाद भी बैपरवाह हैं। शीला का दावा है कि दिल्ली में तीन-चार सीट जरूर जीते हैं। उन्हें जमसमर्थन भी मिल रहा है। आम आदमी पार्टी शीला के आने के बाद लोगों के कनेक्ट होने से परेशानी महसूस कर रही है। उसे अल्पसंख्यक वोटों के एकतरफा नुकसान का खतरा नजर आ रहा है।
हालांकि भाजपा के मनोज तिवारी इससे खुश हैं। मनोज को लग रहा है कि इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। यही नहीं शीला के इस निर्णय ने कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष की नजर में भी उनका मान बढ़ा दिया है। राहुल गांधी मानने लगे हैं कि शीला दीक्षित का सुझाव सही था। वह दिल्ली में कांग्रेस के भविष्य को ध्यान में रखकर चल रही हैं। राहुल की यह सोच अब कभी राहुल के करीबी और शीलाा के विरोधी रहे अजय माकन हो हजम भी हो तो कैसे?
राजनाथ का दम
केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह चतुर सुजान हैं। राजनीति में उनका कोई सानी नहीं है। उनके एक विरोधी कहते हैं कि वह कछुए की मानिंद सुरक्षा करने में माहिर हैं। विपरीत स्थिति आते ही सज्जनता के खोल की शरण ले लेते हैं और अनुकूल परिस्थिति में जोरदार रूप दिखाते हैं। मोदी सरकार के एक कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह को धोतीवाला कहते हैं। धोतीवाला उनकी नजरों में एक व्यंग है। मंत्री जी राजनाथ सिंह की राजनीति से किंचित परेशान हैं। राजनाथ सिंह ने लोकसभा चुनाव में अपने करीबियों का टिकट और सम्मान बचाने में सफलता पा ली। संकल्प पत्र समिति के तौर पर भी केन्द्रीय नेतृत्व ने उनके काम को सराहा। संघ में भी अच्छी पकड़ है।
लखनऊ संसदीय सीट अच्छे से साध लिया है।
मुलायम सिंह यादव को देखने गए तो कल्वे सादिक, कल्वे जव्वाद का भी भरोसा लिया। अटल जी की तरह हिन्दू, मुसलमान, पक्ष, विपक्ष सबकी तारीफ बटोर रहे हैं। ऐसे में धुर विरोधी मंत्री जी को बात जरा कम पच रही है, क्योंकि राजनाथ जहां बड़े अंतर से चुनाव जीत सकते हैं, वहीं भाजपा के धर्म निरपेक्ष सर्वस्वीकार्य चेहरे का भविष्य भी उज्वल रहता है।
बदले-बदले से हैं सरकार
केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। उदार, हंसमुख, बड़बोले, मीडियाप्रिय गड़करी इन दिनों जरूरत से ज्यादा संयम बरतकर चल रहे हैं। उनके राजनीतिक और मीडिया सलाहकार भी गड़करी को इसी तरह की सलाह दे रहे हैं। यह स्वभाव परिवर्तन दिल्ली के तमाम मंझे हुए राजनीतिक गलियारे के नारद संप्रदाय को रास नहीं आ रहा है। लेकिन बताते हैं कि संघ ने भी गड़करी से इसी तरह के व्यवहार के सलाह दी है। गड़करी के कभी दाहिना हाथ रहे नाना पटोले ने वैसे ही कांग्रेस के टिकट पर नागपुर में उन्हें तगड़ी चुनौती दे रखी है।
गड़करी की इच्छा इंदौर से चुनाव लडऩे की थी, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और शाह ने नई रणनीति पर काम किया। उन्होंने किसी को भी दो सीटों से चुनाव लड़ाने से परहेज किया। यहां तक कि खुद भी नहीं लड़े। यह स्थिति तब है जब संघ के सूत्र मानते हैं कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। इतना ही नहीं एनडीए को भी साथी बढ़ाने पड़ेंगे। वहीं प्रधानमंत्री मोदी और शाह को अपने कौशल पर पूरा भरोसा है। माना जा रहा है कि अब गड़करी भी हवा का रुख देखकर चल रहे हैं।
प्रियंका गांधी ने खेला सांप से खेल
प्रियंका गांधी वाड्रा सहज तरीके से बोलती हैं, व्यवहार करती हैं। विरोधी भी मानते हैं कि प्रियंका में दम हैं। भाजपा की एक केन्द्रीय मंत्री टांट कसते हुए कहती हैं कि प्रियंका में अपने भाई से कई गुणा ज्यादा टैलेंट है। पिछले दिनों प्रियंका के मन में अचानक सपेरों की बस्ती में जाने का मन आया। पहुंच गई। सांप-सपेरा और पिटारा सब सामने। प्रियंका ने सामान्य भाव से गेहुंए सांप को उठा लिया। मीडिया ने भी हाथों हाथ खबर दिखाना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर भी वीडियो जमकर वायरल हो गया। बताते हैं इस वायरल वीडियों से क्या संदेश गया वह राजनीति केपंडित जानें, लेकिन प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार में लगे रणनीतिकार भी इससे तंग हो गए। इतना तंग कसे मुद्दे पर निशाना साध दिया। इससे कांग्रेस के खेमे ने भी राहत की सांस ली। क्योंकि इसके चक्कर में भाजपा मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का भरपूर लाभ नहीं ले पाई।
कांग्रेसी भी मानते हैं लोहा
प्रधानमंत्री की प्रचार अभियान शैली का जवाब नहीं। वह चुनाव आचार संहिता लगने, चुनाव प्रक्रिया चलने और मतदान के पांच चरण पूरा हो जाने के बाद भी अपनी बादशाहत बनाए हुए हैं। कांग्रेस के दिग्गज भी प्रधानमंत्री की इस छवि का लोहा मान रहे हैं। अभी भी प्रधानमंत्री का इंटरव्यू चाहने वाले मीडिया कर्मियों की कतारे लगी है। चैनलों में भी मेगा इवेंट दिखाने की होड़ सी है। टीवी टूडे समूह ने प्रधानमंत्री के बनारस से नामांकन की मेगा कवरेज दी थी। इंडिया टीवी के रजत शर्मा पहले प्रधानमंत्री के व्लू आई मीडिया मैन रहे हैं। उन्होंने बाकायदा जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम बुक करा दिया।
भारी-भरकम भीड़, लक दक भरा स्टेडियम और शानदार सिनेमैटोग्राफी स्टाइल में हुए मेगा इंटरव्यू। अक्षय कुमार का इंटरव्यू भी नया बुखार छोड़ गया था। इस कतार में अभी जी न्यूज को एक मेगा इवेंट करना है। बताते हैं कुछ और मीडिया हाऊस भी अर्जी लगा रहे हैं। खबर तो यहां तक है कि 19 मई के बाद भी प्रधानमंत्री को लोग फुर्सत देने के मूड में नहीं है। प्रधानमंत्री की अपनी टीम भी इसको लेकर बेहद सधे तरीके से चल रही है। पोस्ट इलेक्शन की तैयारी पर भी ध्यान दिया जा रहा है। सुधीजन बस ठाड़े रहिए।
किसका होगा बिहार
बिहार किसका होगा? राज्य से दो बड़े नेता हैं। एक हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार। पूरे बिहार में कुछ न कुछ जनाधार रखते हैं। दूसरे नेता है लालू प्रसाद के राजनीतिक वारिस, पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव। बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने भी तेजस्वी के आगे सरेंडर करके अब आध्यात्म में मन लगाना शुरू कर दिया है। रघुवंश बाबू समेत अन्य भी मानने लगे हैं कि तेजस्वी में कुछ तो है। नये नेता पुत्रों में तेजस्वी ने अच्छा कौशल दिखाया है। बिहार के राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में राजद के पास सबसे ज्यादा सीटें रहेगी। दूसरे नंबर पर भाजपा रहेगी। तीसरे नंबर पर जद(यू), चौथे पर कांग्रेस के सांसदों की संख्या रहेगी।
पांचवे नंबर पर लड़ाई है। रालोसपा या लोजपा के सीटों की संख्या बराबर या कुछ ही ऊपर-नीचे रह सकती है.....वगैरह...वगैरह। कदाचित राजनीतिक पंडितों का अनुमान सही साबित हुआ तो नीतिश कुमार का दबदबा घट सकता है। सुशील मोदी के नेतृत्व में बिहार में भाजपा का दबदबा बढ़ सकता है। तेजस्वी यादव के हाथ में राजनीति की बड़ी संभावना लगने की चाबी आ सकती है। पीके की टीम के सदस्य की माने तो इस तरह की आशंका नीतिश कुमार को भी परेशान कर रही है। टीम के करीबी मान रहे हैं भाजपा के साथ आने के बाद नीतिश के साथ अल्पसंख्यक थोड़ा नि कंफर्टेबल महसूस कर रहे हैं।