मोदी सरकार 2.0 : सत्ता के असली सूत्रधार मोदी और अमित शाह ही हैं

इसके अलावा, एक अहम मुद्दा बांग्लादेशी घुसपैठियों का है, इस पर नवनिर्वाचित गृह मंत्री अमित शाह के बयान से स्पष्ट है, कि वह विदेशी घुसपैठियों के मामले पर कोई ढिलाई नहीं बरतेंगे। यहीं नहीं, वह फिर से विवादास्पद नागरिकता संशोधन बिल भी ला सकते है। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किए जाने की बात वह कर ही कर चुके हैं। ऐसे में कई लोगों को यह आशंका है कि बेशक वह पहले गृह मंत्री सरदार पटेल की तरह सख्त होंगे, लेकिन कहीं इससे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के मोदी मंत्र में कमी न आ जाए। जहां तक अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाए जाने की बात है, तो अब इस पर किसी को शक नहीं कि राम मंदिर बन जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी के बाद सबसे कद्दावर और जमीनी राजनीति से जुड़े नेता राजनाथ सिंह का मंत्रालय बदल दिया गया है, जो अमित शाह की तरह पार्टी अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके मंत्रिमंडल फेरबदल पर कई तरह के कयास लगाए जा सकते हैं, लेकिन इसका निष्कर्ष अब यही है कि यह सरकार मोदी 2.0 है। जहां तक वित्त मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की बात है, तो इसकी जिम्मेदारी निर्मला सीतारमण को सौंपी गई है। जाहिर है, निर्मला सीतारमण के अनुभव और उनकी कार्यशैली उनके पक्ष में गई है। अपने कठिन परिश्रम से उन्होंने कैबिनेट में अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाई है।
नए मंत्रिमंडल में कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यरिटी (जो गंभीर संकट की स्थिति में रणनीति बनाती है) में दो ऐसे मंत्री हैं, जो पहले कभी केंद्र के मंत्री नहीं रहे। लेकिन इसकी अगुआई प्रधानमंत्री स्वयं करते हैं, जिन्हें अब इसका पूरा तजुर्बा है। अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री रह चुके हैं। एस जयशंकर विदेश सचिव भी रह चुके हैं, इसलिए एक आला अफसर की हैसियत से वह विदेश नीति और सुरक्षा के मामलों को भलीभांति समझते हैं। इसलिए चेहरों में नयापन के बावजूद भी दोनों को अनुभव की कमी नहीं है।
नितिन गडकरी, रविशंकर प्रसाद जैसे मंत्री पहले के मंत्रालयों की ही जिम्मेदारी संभालेंगे। लगता है, जिस तरह जनता ने प्रधानमंत्री को अपने अधूरे वादों को पूरा करने के लिए एक और मौका दिया है, उसी तरह प्रधानमंत्री ने भी अपने कुछ मंत्रियों को अपना काम पूरा करने के लिए एक और मौका दिया है। राहुल गांधी को अमेठी में हराने वाली स्मृति ईरानी को इस बार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय दिया गया है, जो पहले मेनका गांधी के पास था। मेनका गांधी इस मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं हैं।
गौरतलब बात यह भी है कि इस कैबिनेट में कई अनुभवी पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जैसे कि झारखंड के अर्जुन मुंडा और उत्तराखंड के रमेश पोखरियाल निशंक, जिनके पास कैबिनेट चलाने का महत्वपूर्ण प्रशासनिक अनुभव है। जहां तक क्षेत्रीय संतुलन की बात है, तो यह कहना उचित होगा कि दक्षिण की तुलना में उत्तर भारत को ज्यादा तवज्जो दी गई है। आंध्र, केरल और तमिलनाडु से किसी भी सांसद को मंत्री नहीं बनाया गया है, टोकन के तौर पर वी मुरलीधरन, जो कि फिलहाल केरल भाजपा के अध्यक्ष हैं और संगठन में लंबा समय बिता चुके हैं, शपथ दिलाई गई है। कर्नाटक से चार मंत्री बनाए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं सदानंद गौड़ा। पू्र्वोत्तर से किरण रिजिजू को मंत्रिमंडल में जगह मिली है।
इस मंत्रिमंडल में कुल छह महिलाएं हैं, जिसमें बंगाल से भी एक हैं। महिलाओं की भागीदारी कम है, पर दो महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी महिलाओं को दी गई है। गठबंधन के साथियों में लोजपा से रामविलास पासवान, शिरोमणि अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल और शिवसेना से अरविंद सावंत को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण साथी जदयू सरकार से बाहर है। सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहे बालासोर के सांसद प्रताप चंद्र सारंगी, जो सादगी भरा जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं। इन्हें शामिल करके प्रधानमंत्री ने सादगी, निष्ठा और गरीब हितैषी छवि दर्शाने की कोशिश की है। अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने शायद अपने नाजुक स्वास्थ्य की वजह से मंत्रिमंडल से बाहर रहना पसंद किया। सुरेश प्रभु, जयंत सिन्हा, विजय गोयल, राज्यवर्धन सिंह राठौर, मेनका गांधी जैसे महत्वपूर्ण नाम मंत्रिमंडल में अपनी जगह नहीं बना सके। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस मंत्रिमंडल में सत्ता के असली सूत्रधार अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही हैं। पार्टी, राजनीति और चुनावी प्रक्रिया ही नहीं, अब सरकारी कार्यवाही भी इन्हीं दोनों के इशारे पर चलेगी। आने वाले दिनों में देखना यह है कि दक्षिण के राज्यों में भाजपा अपनी पैठ कैसे बना पाएगी।