केंद्रीय गृहमंत्री बने अमित शाह के लिए बड़ी चुनौती रहेगी 'खाकी बनाम खाकी' की लड़ाई...
अर्धसैनिक बल जैसे सीआरपीएफ, एसएसबी, आईटीबीपी, बीएसएफ और सीआईएसएफ के अफसर संगठित कॉडर सर्विस में नहीं आते हैं। हालांकि इनकी भर्ती भी यूपीएससी करता है और आईपीएस भी यूपीएससी से निकलते हैं, लेकिन आईपीएस संगठित कॉडर सर्विस में आते हैं। इसका मतलब है कि उन्हें एक तय सीमा के बाद प्रमोशन मिलेगी। अगर किन्हीं कारणों से अगला रैंक नहीं मिल पा रहा है तो तब तक उन्हें उस रैंक के सभी वित्तीय एवं दूसरे फायदे मिल जाते हैं। यह सुविधा अर्धसैनिक बलों के अफसरों को नहीं मिलती। नतीजा, वे प्रमोशन में पिछड़ जाते हैं और दूसरे वित्तीय फायदों से भी वंचित रहते हैं। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पंवार का कहना है कि बीस साल की सेवा के बाद आईपीएस अधिकारी आईजी बन जाता है, लेकिन कॉडर अफसर उस वक्त कमांडेंट तक पहुंच पाता है। 33 साल की नौकरी के बाद कॉडर अफसर बड़ी मुश्किल से आईजी बन पाता है। वजह, अर्धसैनिक बलों को संगठित कॉडर सेवा का दर्जा नहीं दिया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट से कॉडर अफसरों के हित में फैसला दे दिया है तो आईपीएस अफसर खुद को विचलित महसूस कर रहे हैं। चूंकि गृह मंत्रालय में पूरी तरह से आईपीएस लॉबी का दबदबा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को टालने की हर जुगत लगाई जा रही है। आईपीएस एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी कि उसे भी इस मामले में पार्टी बनाया जाए। हालांकि अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी थी।
अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू होता है तो अर्धसैनिक बलों के दस हजार अफसरों को पहुंचेगा फायदा...
बता दें कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू होता है तो कम से कम अर्धसैनिक बलों के दस हजार अफसरों को इसका फायदा पहुंचेगा। यदि सीआरपीएफ की बात करें तो 23 डीआईजी, जो आज 33 साल की नौकरी पूरी कर चुके हैं, वे तुरंत प्रभाव से आईजी बन जाएंगे। 3 आईजी एडीजी रैंक पर होंगे, 40 कमांडेंट डीआईजी बनेंगे और एक एडीजी स्पेशल डीजी बन सकता है। अर्धसैनिक बलों के पूर्व अफसरों का कहना है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलेंगे। उन्हें मामले की सच्चाई से अवगत कराया जाएगा। सरकार ने कमेटी गठन के नाम पर अदालत से जो समय माँगा है, वह मामले को टालने के लिए एक सोची-समझी चाल है। बता दें कि इस कमेटी में सभी सदस्य आईएएस हैं या आईपीएस हैं। कमेटी में अर्धसैनिक बलों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। पूर्व अफसरों का कहना है कि अमित शाह को इस मामले का निपटारा जल्द से जल्द करना चाहिए। वे जानते हैं कि देश में आतंकवाद की घटना हो, नक्सली हमले या फिर कोई दूसरी आपदा हो, अर्धसैनिक बलों ने दो क़दम आगे बढ़कर काम किया है। लोकसभा चुनाव को शांतिपूर्वक कराने का श्रेय भी काफ़ी हद तक इन्हीं बलों को जाता है।
2009 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था...
कॉडर अफसर 2009 में इस मामले को लेकर अदालत पहुंचे थे। 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कॉडर अफ़सरों के हित में फ़ैसला सुना दिया। अदालत ने ये भी कहा, आप सभी अधिकारी 1986 से कॉडर सेवा में हो। इसके फैसले के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई। दिसम्बर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का फैसला ठीक बताया। फैसले में कहा गया कि इन बलों को फ़ौरन संगठित कॉडर सेवा और एनएफएफयू का फ़ायदा दिया जाए।