समय के पारखी राजनाथ सिंह क्या बदले माहौल के साथ चल पाएंगे? Bharat Rajneeti - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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शुक्रवार, 7 जून 2019

समय के पारखी राजनाथ सिंह क्या बदले माहौल के साथ चल पाएंगे? Bharat Rajneeti

समय के पारखी राजनाथ सिंह क्या बदले माहौल के साथ चल पाएंगे? Bharat Rajneeti


गृह मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
गृह मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो) - फोटो : Bharat Rajneeti
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 चल रहा था। एक यात्रा में एक केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता से चर्चा में राज्य में क्षत्रिय मतदाताओं की बात आई तो उन्होंने जानना चाहा कि क्या योगी आदित्यनाथ राज्य में राजनाथ सिंह का विकल्प बन पाएंगे? चुनाव के नतीजे आए और योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। अब भाजपा में अंदरखाने यह स्थापित चर्चा है कि मुख्यमंत्री योगी ने यूपी में राजनाथ सिंह की क्षत्रियों के दिल पर राज करने वाली जमीन हथिया ली है। यह राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का फार्मूला है। वह अपना काम ढोल बजाकर नहीं करते। इसी फार्मूले पर वह अटल-आडवाणी युग के करीब-करीब सभी बड़े नेताओं को आराम कुर्सी  तक ले जा चुके हैं। बचे हैं अकेले राजनाथ सिंह। वह भी संघ से मिल रहे आशीर्वाद की बदौलत। 
2018 की एक घटना

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उनके आवास पर मिलना हुआ। बार-बार कश्मीर और आंतरिक सुरक्षा पर पूछे गए सवाल पर राजनाथ सिंह सीधे जवाब देने से बच रहे थे। कई सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ वह ठीक तो एक दिन में कर देंगे, लेकिन (इशारा करते हुए) उनकी कुछ सीमाएं हैं। यह बात देश का गृहमंत्री कह रहा था। यह सब जानते हैं कि पिछले पांच साल तक बार-बार आतंकियों, दहशतगर्दों और पाकिस्तान की  तीव्र निंदा, कड़ी चेतावनी देकर राजनाथ सिंह ने मंत्रालय की जिम्मेदारी निभाई है। सत्ता के गलियारे में भी कई बार सुनने को मिला कि राजनाथ सिंह के हाथ बंधे हुए हैं।

राजनाथ ने किया तालमेल 

राजीव प्रताप रूडी समेत तमाम नेता राजनाथ सिंह को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। बलिया के पूर्व सांसद भरत सिंह राजनाथ की तारीफ नहीं करते थकते। बाद में जिसने तालमेल बना लिया, वह राजनीति की मुख्यधारा में बना रहा और जिसने समय के अनुसार खुद को नहीं बदला वह हाशिए पर चला गया। इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा हो या फिर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा, चेहरा और प्रत्याशी का संपर्क तो देखा ही गया। यह बात अलग है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयार होने वाले संकल्प पत्र की समिति के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ही थे। राजनाथ सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपने के पीछे का बड़ा कारण लाल कृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी जैसी भाजपा की राजनीतिक धरोहर की सक्रिय राजनीति से की जाने वाली विदाई भी थी। संकल्प पत्र जारी होने के बाद जोशी और आडवाणी के करीबियों के मुंह से बार-बार निकल रहा था देखिए राजनाथ सिंह क्या पा जाते हैं। 

राजनाथ भी हैं जिम्मेदार

इस पूरे बदलाव में राजनाथ सिंह कम जिम्मेदार नहीं हैं। राजनाथ सिंह 1977 में पहली बार विधायक बने थे। तब से वो राजनीति की छाछ हमेशा फूंक कर पीते रहे। 90 के दशक में उ.प्र. में कल्याण सिंह की सरकार बनने के बाद राजनाथ सिंह शिक्षा मंत्री बने थे। तब से राज्य का मुख्यमंत्री बनने तक दबे पांव राजनीति में कई कदम बढ़ाए। इन्ही कदमों ने उन्हें एक चतुर राजनेता में बदल दिया। संघ के कभी एक ताकतवर चिंतक रहे सूत्र के अनुसार राजनाथ सिंह की छुरी में धार नहीं होती, लेकिन काटती बहुत तेज है। बताते हैं उ.प्र. में कल्याण सिंह से निपटने, टीम आडवाणी का सामना करने के लिए राजनाथ सिंह चुपचाप तैयार हो गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी को भी पसंद आए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक अपनी जमीन बनाने में सफल रहे। राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बन गए।

जय हो लालकृष्ण आडवाणी जी

लालकृष्ण आडवाणी की टीम का कोई भी पुराना नेता राजनाथ सिंह का नाम बहुत संभलकर लेता है। टीम के हर पुराने नेता का मानना है कि जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ाकर लौटने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। राजनाथ सिंह संघ की कृपा से भाजपा अध्यक्ष बनाए गए थे। यहां भी राजनाथ ने शतरंज के घोड़े की तरह खूब ढाई कदम की चाल चली थी। नितिन गडकरी के बाद और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी राजनाथ सिंह को अध्यक्ष पद यूं ही नहीं मिला था। 2013 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की केन्द्रीय राजनीति में भूमिका बढ़ रही थी तो राजनाथ सिंह संघ के करीब रहकर अपनी राजनीति का भविष्य सुनिश्चित कर रहे थे और लालकृष्ण आडवाणी की विदाई का रास्ता बना रहे थे। कई पूर्व केन्द्रीय मंत्री दबी जुबान से ही सही इसका किस्सा बताने से नहीं चूकते। 

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली से राजनाथ सिंह का नाम भर लीजिए तो वह पहले ही काफी संभलकर व्यंगात्मक मुस्कान चेहरे पर बिखेर देते हैं। जसवंत सिंह को भाजपा से निलंबित किया जाना हो या आडवाणी के करीबियों का निबटारा हो, राजनाथ सिंह दूरगामी राजनीति को देखकर कदम बढ़ाने वाले माने जाते रहे। 

मोदी और शाह को नहीं साध पाए

2013 के पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से उनका कोई बहुत गंभीर रिश्ता नहीं था। लेकिन समय के पारखी राजनाथ ने राजनीति में मोदी का तरीका देखा। राजस्थान के विधानसभा चुनाव, राज्यपाल कमला बेनीवाल के जयपुर में पारिवारिक समारोह समेत अन्य में राजनाथ को मोदी साफ उभरते दिखे। राजनाथ सिंह ने बड़ा फैसला लिया। वह नरेंद्र मोदी के साथ जाकर खड़े हो गए। राजनाथ का यह बड़ा ही कैलकुलेटेड निर्णय था। क्योंकि तब तक लालकृष्ण आडवाणी बनाम नरेंद्र मोदी की राजनीति सतह पर जगह बना चुकी थी। राजनाथ सिंह हर मोदी के साथ खड़े रहे। संसदीय बोर्ड की मीटिंग तक में डॉ. मुरली मनोहर जोशी वाराणसी की अपनी सीट से लड़ने के लिए अड़ते रहे और राजनाथ सिंह खामोश रहे। 

सुषमा स्वराज ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर गहरी नाराजगी जताई। डिसेंट नोट लिखने तक को कहा। वरिष्ठ नेताओं को पछताने की चेतावनी तक दे दी, लेकिन राजनाथ सिंह खामोश रहकर नरेंद्र मोदी का रास्ता बनाते रहे। रास्ता बना भी। अमित शाह यूपी चुनाव अभियान के प्रभारी बन गए। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए। चुनाव बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा का सम्मान करते हुए राजनाथ सिंह गृहमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री के कैबिनेट में नेता नंबर दो।  

....तो क्या राजनीति की आखिरी पारी खेल रहे हैं राजनाथ

भाजपा के दिग्गज नेता को अपने पुत्र पंकज सिंह को टिकट दिलवाने, उन्हें राजनीति में बनाए रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ी थी। 2014 में पांच साल के लिए सत्ता के शीर्ष पर बैठने का अवसर खो चुके राजनाथ को अपनी स्थिति बचाए रखने के लिए काफी संयमित, शांत, समझौतावादी होना पड़ा। इससे उनकी छवि राजनीति में एक खामोश नेता  की बन गई है। इस बार भी वह समय की चाल देखकर रक्षा मंत्री बनने के लिए राजी हो गए। कैबिनेट की आठ समितियों में से वह केवल दो समिति में रखे गए। अमित शाह सभी आठ में हैं। शुरुआत में राजनाथ सिंह जैसे नेता को कैबिनेट की संसदीय मामलों की समिति और राजनीतिक मामलों की समिति में भी नहीं रखा गया। नेता नंबर दो से वह नेता नंबर चार पर खिसकते गए। माना जा रहा है कि इस बार भी संघ ने पहले की तरह की उनके प्रतिष्ठा की रक्षा की। तब कहीं जाकर वह 24 घंटे के भीतर छह समितियों में स्थान पा सके हैं। वैसे देखा जाए तो इस बार के लोकसभा चुनाव और केंद्रीय मंत्रिमंडल से सुषमा स्वराज, उमा भारती, सुमित्रा महाजन समेत तमाम नेता बाहर हैं। अटल-आडवाणी युग का चेहरा न के बराबर है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और शाह नए युग की तरफ बढ़ते हुए स्थापित होने जा रहे हैं।

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