समय के पारखी राजनाथ सिंह क्या बदले माहौल के साथ चल पाएंगे? Bharat Rajneeti

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उनके आवास पर मिलना हुआ। बार-बार कश्मीर और आंतरिक सुरक्षा पर पूछे गए सवाल पर राजनाथ सिंह सीधे जवाब देने से बच रहे थे। कई सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ वह ठीक तो एक दिन में कर देंगे, लेकिन (इशारा करते हुए) उनकी कुछ सीमाएं हैं। यह बात देश का गृहमंत्री कह रहा था। यह सब जानते हैं कि पिछले पांच साल तक बार-बार आतंकियों, दहशतगर्दों और पाकिस्तान की तीव्र निंदा, कड़ी चेतावनी देकर राजनाथ सिंह ने मंत्रालय की जिम्मेदारी निभाई है। सत्ता के गलियारे में भी कई बार सुनने को मिला कि राजनाथ सिंह के हाथ बंधे हुए हैं।
राजनाथ ने किया तालमेल
राजीव प्रताप रूडी समेत तमाम नेता राजनाथ सिंह को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। बलिया के पूर्व सांसद भरत सिंह राजनाथ की तारीफ नहीं करते थकते। बाद में जिसने तालमेल बना लिया, वह राजनीति की मुख्यधारा में बना रहा और जिसने समय के अनुसार खुद को नहीं बदला वह हाशिए पर चला गया। इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा हो या फिर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा, चेहरा और प्रत्याशी का संपर्क तो देखा ही गया। यह बात अलग है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयार होने वाले संकल्प पत्र की समिति के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ही थे। राजनाथ सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपने के पीछे का बड़ा कारण लाल कृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी जैसी भाजपा की राजनीतिक धरोहर की सक्रिय राजनीति से की जाने वाली विदाई भी थी। संकल्प पत्र जारी होने के बाद जोशी और आडवाणी के करीबियों के मुंह से बार-बार निकल रहा था देखिए राजनाथ सिंह क्या पा जाते हैं।
राजनाथ भी हैं जिम्मेदार
इस पूरे बदलाव में राजनाथ सिंह कम जिम्मेदार नहीं हैं। राजनाथ सिंह 1977 में पहली बार विधायक बने थे। तब से वो राजनीति की छाछ हमेशा फूंक कर पीते रहे। 90 के दशक में उ.प्र. में कल्याण सिंह की सरकार बनने के बाद राजनाथ सिंह शिक्षा मंत्री बने थे। तब से राज्य का मुख्यमंत्री बनने तक दबे पांव राजनीति में कई कदम बढ़ाए। इन्ही कदमों ने उन्हें एक चतुर राजनेता में बदल दिया। संघ के कभी एक ताकतवर चिंतक रहे सूत्र के अनुसार राजनाथ सिंह की छुरी में धार नहीं होती, लेकिन काटती बहुत तेज है। बताते हैं उ.प्र. में कल्याण सिंह से निपटने, टीम आडवाणी का सामना करने के लिए राजनाथ सिंह चुपचाप तैयार हो गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी को भी पसंद आए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक अपनी जमीन बनाने में सफल रहे। राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बन गए।
जय हो लालकृष्ण आडवाणी जी
लालकृष्ण आडवाणी की टीम का कोई भी पुराना नेता राजनाथ सिंह का नाम बहुत संभलकर लेता है। टीम के हर पुराने नेता का मानना है कि जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ाकर लौटने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। राजनाथ सिंह संघ की कृपा से भाजपा अध्यक्ष बनाए गए थे। यहां भी राजनाथ ने शतरंज के घोड़े की तरह खूब ढाई कदम की चाल चली थी। नितिन गडकरी के बाद और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी राजनाथ सिंह को अध्यक्ष पद यूं ही नहीं मिला था। 2013 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की केन्द्रीय राजनीति में भूमिका बढ़ रही थी तो राजनाथ सिंह संघ के करीब रहकर अपनी राजनीति का भविष्य सुनिश्चित कर रहे थे और लालकृष्ण आडवाणी की विदाई का रास्ता बना रहे थे। कई पूर्व केन्द्रीय मंत्री दबी जुबान से ही सही इसका किस्सा बताने से नहीं चूकते।
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली से राजनाथ सिंह का नाम भर लीजिए तो वह पहले ही काफी संभलकर व्यंगात्मक मुस्कान चेहरे पर बिखेर देते हैं। जसवंत सिंह को भाजपा से निलंबित किया जाना हो या आडवाणी के करीबियों का निबटारा हो, राजनाथ सिंह दूरगामी राजनीति को देखकर कदम बढ़ाने वाले माने जाते रहे।