Modi Government 2.0 में दक्षिण भारतीय राज्यों का दर्द, तमिलनाडु-आंध्र से एक भी मंत्री न होने पर उठे सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रिपरिषद के गठन में क्षेत्रीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखते हुए दिल्ली में दूसरी पारी की शुरुआत कर दी है, लेकिन दक्षिण भारत में, खासतौर पर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में यह धारणा आकार ले रही है कि उनके क्षेत्रों को मंत्रिमंडल में पर्याप्त जगह नहीं मिली है।
निर्मला सीतारमण कर्नाटक से राज्यसभा सांसद हैं, उन्हें वित्त मंत्रालय दिया गया है। उनके अलावा कर्नाटक से तीन सांसदों को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह दी गई है। इसके अलावा केरल और तेलंगाना से भी एक-एक सांसदों को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है।
हालांकि, तमिलनाडु के खाते में मोदी सरकार 2.0 की मंत्रिपरिषद में एक भी सीट नहीं गई है, जबकि 2009 में सप्रंग-2 की सरकार के दौरान तमिलनाडु के हिस्से में नौ केंद्रीय मंत्री थे। हालांकि, राजग के सहयोगी दल अन्ना द्रमुक ने थेनी लोकसभा क्षेत्र में जीत हासिल की है, लेकिन बाकी 37 सीटों को डीएमके-कांग्रेस के गठबंधन ने जीता है।
डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन का कहना है प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु से एक भी सांसद मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं कर यह तमिलनाडु के लोगों का अपमान है। प्रधानमंत्री यहां के लोगों से नाराज हैं, क्योंकि लोगों ने भाजपा को एक भी सीट नहीं जीतने दी।
तमिलनाडु में कांग्रेस के अध्यक्ष के.एस. अलागिरि ने कहा कि मंत्रिपरिषद में अन्नाद्रमुक को जगह नहीं देना सिर्फ अन्ना द्रमुका का ही नहीं बल्कि केरल के लोगों का बहिष्कार है। केरल के साथ अनुचित व्यवहार का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा केरल के लोगों में चुनावों के दौरान मोदी के खिलाफ गुस्से की लहर साफ दिखी, इसी वजह से तमिलनाडु को मंत्रिपरिषद में दरकिनार किया गया है।
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारणम और विदेश मंत्री एस. जयशंकर का तमिलनाडु के लोगों से कोई संबंध नहीं इसलिए उन्हें किसी भी तरह से तमिलनाडु के प्रतिनिधियों के तौर पर नहीं देखा जा सकता। उन्होंने कहा कि यह बात समझ से परे है कि आखिर किस वजह से भाजपा ने तमिलनाडु से एक भी नेता को मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया, जबकि उन्हें राज्यसभा से सदस्यता दिलाई जा सकती थी।
राजनीतिक पंडित भी एकमत नहीं
राजनीतिक टिप्पणीकार एम. भारत कुमार कहते हैं कि निर्मला सीतारमण कर्नाटक से राज्यसभा सांसद हैं और एस. जयशंकर का संबंध दिल्ली से है। वह सवाल उठाते हैं ऽये दोनों नेता फिलहाल किसी भी तरह तमिलनाडु से संबंध नहीं रखते, ऐसे में इनसे कैसे हमारे राज्य के हितों की रक्षा की अपेक्षा की जा सकती है?
वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषक रविंद्रन दुरैसामी का कहना है जो भी है, यह कहना कतई गलत है कि तमिलनाडु के साथ गलत हुआ है। निर्मला सीतारमण और एस. जयशंकर दोनों की जड़ें तमिलनाडु से जुड़ी हैं। वह आगे कहते हैं, भले ही सीतारणम को कर्नाटक से चुना गया है, लेकिन वह तमिलनाडु की मूल निवासी हैं और इसी तरह से एस.जयशंकर भी यहीं पैदा हुए हैं।
राजनीतिक पंडित भी एकमत नहीं
राजनीतिक प्रेक्षक डी जगधीश्वरन कहते हैं अन्ना द्रमुक के शीर्ष नेतृत्व में मतभेद की वजह से केंद्रीय मंत्रिमपरिषद में अन्ना द्रमुक को एक भी सीट नहीं मिल सकी। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद एल गणेशन कहते हैं मौजूदा कैबिनेट अभी परिपूर्ण नहीं है। उनका इशारा भविष्य में कैबिनेट के विस्तार के दौरान तमिलनाडु को जगह दिए जाने की ओर था। वह कहते हैं, अन्ना द्रमुक को मंत्रिपरिषद में जगह मिलनी चाहिए थी। लेकिन हम नहीं जानते कि बातचीत के दौरान क्या हुआ।ऽ यही अनुमान मंत्रिपरिषद में आंध्र प्रदेश के प्रतिनिधित्व को लेकर लगाया गया था।
जैसे आंध्र का केंद्र का रिश्ता ही नहीं
आंध्र प्रदेश के राजनीतिक टिप्पणीकार पी नवीन कहते हैं, मोदी सरकार की मंत्रिपरिषद को देखते हुए लगता है, जैसे केंद्र सरकार का आंध्र प्रदेश से कोई संबंध ही नहीं है। सुरेश प्रभु आंध्र प्रदेश से भाजपा के अकेले सांसद हैं, जिन्हें 2016 में राज्यसभा के लिए चुना गया था। लेकिन उन्हें भी इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी है।
गौरतलब है, कि भाजपा को हालिया आम चुनावों में आंध्र प्रदेश में 25 में से एक भी लोकसभा सीट पर जीत हासिल नहीं हुई है। 2014 में राजग सहयोगी तेलगु देशम पार्टी के गजापति राजू और वाई.एस. चौधरी को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था। वहीं सप्रंग की सरकार के दौरान, जब आंध्र प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था, तो कांग्रेस के 30 सांसद यहां से चुने गए थे और सात से ज्यादा मंत्री थे। सप्रंग सरकार में जयपाल रेड्डी, एम.एम. पल्लम राजू कैबिनेट मंत्री थे।
कर्नाटक में दो बड़ी जातियों को साधा
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में में राजनीति दर्शन पढ़ानेन वाले नारायणा ए कहते हैं, हालांकि कर्नाटक को केंद्र सरकार की मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व दिया गया है। लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगा कि राज्य को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है, क्योंकि अभी कैबिनेट का विस्तार होना है।
हालांकि, वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं, कर्नाटक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग पिछले कुछ समय से खासतौर पर समर्थन में हैं, ऐसे में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिलना चौंकाने वाला है।
वह कहते हैं कि सदानंद गौडा (वोक्कालिगा) और सुरेश अंगाड़ी (लिंगायत) को मंत्रिपरिषद में शामिल कर पीएम मोदी ने कर्नाटक की दो बड़ी प्रभावशाली जातियों को साधने का काम किया है। कर्नाटक से एक और मंत्री प्रहलाद जोशी ब्राह्मण हैं। इस तरह से सिर्फ पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व की गुंजाइश रह जाती है। पिछली बार कर्नाटक से सीतारमण सहित पांच मंत्री थे।
मंत्रिपद नहीं, सरकार का रुख महत्वपूर्ण भाजपा
केरल इकाई के भाजपा प्रमुख पी.एस. श्रीधरण पिल्लई कहते हैं, भले ही दक्षिण से भाजपा को बहुत कम सांसद मिले हों, लेकिन प्रधानमंत्री ने मंत्रिपरिषद में दक्षिण भारत को अच्छी जगह दी है। अन्य भाजपा नेता एस सुरेश कहते हैं, किस राज्य से कितने मंत्री बने यह बात महत्व नहीं रखती, महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार का राज्यों के प्रति रुख है। वह कहते हैं कि केंद्र सरकार ने पिछले कार्यकाल में सभी राज्यों के साथ बराबरी का व्यवहार किया था, बिना इस बात की परवाह किए कि किस राज्य से उनके कितने सांसद हैं, यही परंपरा आगे भी जारी रहेगी।
मिसाल के तौर पर केरल में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन फिर भी पार्टी के पूर्व राज्य प्रमुख वी. मुरलीधरन को विदेश राज्य मंत्री बनाया गया है। वह महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद हैं। वहीं सप्रंग सरकार के दूसरे कार्यकाल में केरल से आठ सांसदों को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था।