मोदी कैबिनेट में नितिन गडकरी कुछ खोए खोए से, चुप चुप से हैं
![मोदी कैबिनेट में नितिन गडकरी कुछ खोए खोए से, चुप चुप से हैं नितिन गडकरी (फाइल फोटो)](https://spiderimg.amarujala.com/assets/images/2018/08/28/750x506/nitin-gadkari_1535431739.jpeg)
2014 में जब मोदी सरकार ने शपथ ली तो उस वक्त नितिन गडकरी की वेशभूषा ही नहीं, बल्कि व्यवहार भी अलग था। इस बार के शपथग्रहण समारोह में वे चौथे नंबर पर बैठे थे, जबकि पिछली दफा उनसे पहले अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, सुष्मा स्वराज बैठे थे। राजनाथ सिंह पहले भी दूसरे नंबर पर बैठे और इस बार भी वे नंबर दो पर रहे। इन सब बातों के मद्देनज़र, विपक्ष ही नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर से भी ऐसी आवाजें आ रही हैं कि नितिन गडकरी कुछ अलग-थलग से पड़ गए हैं।
बता दें कि चुनाव से पहले नितिन गडकरी ने इशारों-इशारों में मोदी-शाह की कार्यशैली पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जब भाजपा के हाथ से सत्ता हाथ निकली तो केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पर सीधा निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, जब विधायक और सांसद हारते हैं तो जिम्मेदारी पार्टी अध्यक्ष की ही होती है।
उस वक्त नितिन गडकरी इस मुहिम में अकेले नहीं थे। उन्हें पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के अलावा मौजूदा कई केंद्रीय मंत्रियों और संघ के कुछ बड़े पदाधिकारियों का समर्थन मिल रहा था। उसी दौरान कई सहयोगी दलों की ओर से भी यह आवाज आने लगी कि 2019 में अगर भाजपा को बाहर से समर्थन की जरूरत पड़ी तो वे नितिन गडकरी के नाम पर सहमत हो सकते हैं।
2014 में ही अमित शाह और नितिन गडकरी के बीच बढ़ गई थी दूरी
जब तीन राज्यों में भाजपा हारी तो नितिन गडकरी ने अपनी भड़ास निकाली। आरएसएस ने भी गडकरी के किसी बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अब मोदी और शाह की जोड़ी ने भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत दिलाया तो आरएसएस भी नितिन गडकरी के लिए कुछ बोलने की स्थिति में नहीं रहा। पार्टी सूत्र बताते हैं कि साल 2010 से लेकर 2013 तक जब गडकरी पार्टी अध्यक्ष थे तो वे अमित शाह को मिलने के लिए खूब इंतजार कराते थे।
'उन्हें' नितिन गडकरी का खुलकर बोलना पसंद नहीं
उसमें गडकरी ने पार्टी की नीतियों का जिक्र करते हुए कहा, ये खट्टर साहब हैं, जब मैं पार्टी अध्यक्ष था तो ये मेरे पास काम मांगने आते थे। पार्टी के लिए मुझे कोई काम दीजिये। आज देखिये, ये मुख्यमंत्री हैं। हमारी पार्टी में कोई परिवार नहीं देखा जाता है, जो काम करता है, उसे फल मिलता है। ऐसे ही 2014 के चुनाव से पहले गडकरी ने एक बैठक में नीतिश कुमार से कहा, मेरी गारंटी है कि हम चुनाव से पहले किसी भी नेता का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे नहीं लाएंगे।
उस वक्त गडकरी पार्टी अध्यक्ष थे। वे दूसरी बार पार्टी अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन कथित तौर पर एक घोटाले में नाम आने के कारण वे इससे वंचित रह गए। मंत्री रहते हुए भी वे कई बार अपने खुलेपन के लिए चर्चित रहे हैं। अब उनका यही अंदाज भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को रास नहीं आ रहा है।