गुरु पूर्णिमा - ये हैं गुरु की महिमा से भरे 20 दोहे
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय
सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया
कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म - जन्मान्तरो की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट
गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार - मारकर और गढ़ - गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान
गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया।
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं
गुरु को अपना सिर मुकुट मानकर, उसकी आज्ञा में चलो। कबीर साहिब कहते हैं, ऐसे शिष्य - सेवक को तीनों लोकों से भय नहीं है।
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं
गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जायेगा।
ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास
ज्ञान, सन्त - समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य - स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास - ये सब गुरु की सेवा से मिलते हैं।
हरि रूठे गुरु ठौर है गुरु रुठै नहीं ठौर
हरि यानी भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण मिल सकती है लेकिन गुरु के रूठने पर कहीं शरण नहीं मिल सकती।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै गुरु बिन मिलै न मोक्ष
गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै न दोष
गुरु के बिना ज्ञान नहीं आता और न ही मोक्ष मिल सकता है। गुरु को बिना सत्य की प्राप्ति नहीं होती और ना ही दोष मिट पाते हैं।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत
गुरू और पारस के अन्तर को सभी ज्ञानी पुरूष जानते हैं। पारस मणि के विषय जग विख्यात हैं कि उसके स्पर्श से लोहा सोने का बन जाता है किन्तु गुरू भी इतने महान हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना लेते हैं।
कुमति कीच चेला भरा गुरु ज्ञान जल होय
जनम जनम का मोरचा पल में डारे धोय
कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म – जन्मान्तरों की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं।
भवसागर के जाल में फिर फिर गोता खाहि
शब्द गुरु का शब्द है काया का गुरु काय
भक्ति करै नित शब्द की सत्गुरु यौं समुझाय
सो गुरु झूठा जानिये त्यागत देर न लाय
यह तन विषय की बेलरी गुरु अमृत की खान
सीस दिये जो गुरु मिलै तो भी सस्ता जान
दोनों बूड़े बापुरे चढ़ि पाथर की नाँव
मूल ध्यान गुरू रूप है मूल पूजा गुरू पाव
मूल नाम गुरू वचन है मूल सत्य सतभाव
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय
जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर
एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर