जीएसटी के दो साल पूरे होने पर पूर्व वित्त मंत्री की उम्मीद, हो सकती हैं सिर्फ दो दरें
अरुण जेटली(File Photo) - फोटो : bharat rajneeti
खास बातें
- दो साल पूरे होने पर अरुण जेटली ने जताई उम्मीद
- 18 और 28 फीसदी दर के विलय की जताई संभावना
- 55 लाख नए कारोबारी जुड़े हैं नई कर व्यवस्था से
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में राजस्व वसूली में सुधार के साथ आने वाले समय में कर की सिर्फ दो दरें रह सकती हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि 12 फीसदी और 18 फीसदी की दर का विलय का एक किया जा सकता है।
देश में नई कर व्यवस्था के दो साल पूरे होने के मौके पर जेटली ने फेसबुक पर लिखा कि जीएसटी के विरुद्ध जितनी भी आशंकाएं जताई गई थीं, सब निराधार निकलीं और यह बेहद सफल रहा। इसके लागू होने के बाद देश में करदाताओं की संख्या में आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ोतरी हुई है।
उन्होंने कहा कि जीएसटी से पहले देश में 65 लाख कारोबारी ही कर चुकाते थे, लेकिन अब यह संख्या 1.20 करोड़ कारोबारियोें तक पहुंच चुकी है। नई व्यवस्था ने केंद्र सरकार के साथ राज्यों की आय बढ़ाने का भी काम किया है और सरकारों के पास जनोपयोगी सेवाओं को बढ़ाने के लिए ज्यादा वित्तीय मजबूती आई है। पूर्व वित्त मंत्री ने लिखा है कि भारत जैसे देश के लिए एक राष्ट्र-एक कर प्रणाली सही साबित नहीं हो सकती है, क्योंकि यहां भारी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिता रहे हैं।
राज्यों के राजस्व में इजाफा
जेटली ने कहा है कि जीएसटी के लिए राज्यों को राजी करना सबसे कठिन काम था, लेकिन पांच वर्षों तक उनकी आय में इजाफे का वादा करने के बाद सभी को साथ लाया जा सका। अब दो साल बाद जीएसटी के आंकड़े सबके सामने हैं, जो दिखाते हैं कि 20 से ज्यादा राज्यों के राजस्व में 14 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हो रही है। अब इन राज्यों के लिए अलग से फंड जारी करने की जरूरत नहीं होती है।
ग्राहकों पर घटा कर का भार
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी ने सरकारों को ही नहीं, बल्कि ग्राहकों पर भी कर का बोझ काफी कम किया है। पहले वस्तुओं पर 17 तरह के अप्रत्यक्ष कर लगते थे। इसमें वैट 14.5 फीसदी, एक्साइज ड्यूटी 12.5 फीसदी सहित कई कर शामिल थे और इन कर पर भी कर लगता था, जिससे ग्राहकों को 31 फीसदी तक टैक्स चुकाना पउ़ता था। जीएसटी आने के बाद अधिकतम कर 28 फीसदी रह गया है, जो सिर्फ गिने-चुने विलासिता वाली या अहितकर वस्तुओं पर देना पड़ता है।