केवल आंकड़े खुश करने वाले : हो सकता है कि बहुत सारे लोग नाराज हो जाएं
बजट 2019 - फोटो : bharat rajneeti
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समाज के हर वर्ग को खुश करने की कोशिश की। कॉरपोरेट को आयकर में छूट दी गई है। महिलाओं का ध्यान रखने के साथ ही किसानों को केंद्रीय बिंदु में रखने की बात कही। समस्या यह है कि आप जब सबको खुश करने की कोशिश में लगते हैं, तो ऐसा हो सकता है कि बहुत सारे लोग नाराज हो जाएं। वित्त मंत्री ने अपने दो घंटे पन्द्रह मिनट के भाषण में दो घंटे तो यही बताने में बिता दिया कि क्या हो रहा है, क्या होने वाला है। पर आखिरी के दो मिनट में बताया कि पेट्रोल-डीजल पर सेस बढ़ा दिया गया है।
जिससे अब सरकार को हर लीटर डीजल-पेट्रोल पर दो रुपए ज्यादा मिलेगा। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अभी कम हैं, लेकिन जब यह बढ़ेंगी, तो सरकार की सारी गणना असफल हो जाएगी। वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अगले चार साल में पचास खरब डॉलर की हो जाएगी। इसमें तीन अनुमान लगाए गए हैं- एक तो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आठ फीसदी की दर से बढ़ेगा। दूसरा मुद्रास्फीति चार फीसदी की दर से ज्यादा नहीं बढ़ेगी। तीसरी बात रुपया और डॉलर के बीच का अनुपात जो अभी लगभग सत्तर है 2025 तक पचहत्तर डॉलर हो जाएगा। यह तीनों अनुमान क्या वास्तव में सच हैं? मुझे तो लगता है, नहीं। पहले ही सरकार ने कहा था कि इस वर्ष जीडीपी की वृद्धि दर सात से साढ़े सात फीसदी के बीच रहेगी। फिर कम करके साढ़े छह कर दिया, अब कह रहे हैं सात फीसद हो जाएगा। यह तो समय बताएगा कि क्या सच में अच्छे दिन आ रहे हैं। सरकार की बचत पिछले छह साल में आठ फीसद कम हो गई है।
आर्थिक समीक्षा 2019-20 में बताया गया है कि, पिछले आठ साल में निवेश लगातार गिर रहा है, पर उम्मीद है अब इससे ज्यादा नहीं गिरेंगे। मगर यह गिर भी सकता है! निवेश क्यों कम हो रहा है? क्योंकि लोगों की बचत नहीं हो पा रही है। इसका प्रमुख कारण है उत्पादन क्षमता घट रही है, रोजगार नहीं हैं। मनरेगा का बजट 61 हजार करोड़ था, जिसे कम करके 60 हजार करोड़ कर दिया गया। निर्धारित लागत में भी कमी कर दी गई।
श्वेत क्रांति के नाम पर घोषणा तो की गई है कि डेयरी उद्योग को बढ़ावा देंगे पर बजट कम कर दिया। ऐसे में समझ नहीं आ रहा है कि उपभोक्ता की मांग कैसे पूरी होगी। अगर बजट में दिए आंकड़ों पर भरोसा करें, तो यह बहुत बढ़िया बजट है। वित्तीय घाटा कम हुआ है। लेकिन इन आंकड़ों पर विश्वास कैसे करें? जबकि अभी कुछ समय पहले ही देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने कहा कि भारत की जीडीपी का जो नंबर है, वह ढाई फीसदी तक बढ़ाया गया है।
बजट में जो बातें की गईं, इनका असर क्या होगा यह समय बताएगा। इस बजट में किसानों के लिए कोई खास घोषणा नहीं हुई जो प्रभावी हो। फिर चाहे वह जीरो बजट फार्मिंग, एग्रीकल्चर ढांचे में निवेश हो, या दस हजार उत्पादक संघ बनाने बनाने की बात। इसके साथ ही किसानों को तीन किस्तों में छह हजार देने का जो प्रावधान है, वह सकारात्मक जरूर है, पर उन किसानों को क्या जिनके पास अपनी जमीन नहीं है।
विदेशों से आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया है। इससे निर्यात पर असर पड़ेगा। खुशी केवल उद्योगपति घरानों को होगी। विदेशी ऋण भी लेने की बात की गई है। लेकिन अगर विनिमय दर ऊपर-नीचे जाती है तब क्या होगा? इस वक्त कच्चे तेल की कीमत काफी कम है। आपको लगता है कि चार साल तक कुछ नहीं होने वाला है। पर अगर अमेरिका और इराक या अमेरिका-चीन के बीच चल रहे वाणिज्यिक तनाव बढ़ जाते हैं, तो सरकार की सारी गणना इधर-उधर हो जाएगी। ऐसे में अगर मुद्रास्फीति बढ़ जाए, महंगाई बढ़ जाए तो बजट के नकारात्मक असर दिखने शुरू हो जाएंगे।