रेलवे का निजीकरण कोई नहीं कर सकता, पर पीपीपी और निगमीकरण की राह पर चलेंगे

गोयल ने विपक्ष के निजीकरण के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि रेलवे का निजीकरण कोई कर ही नहीं सकता। समस्या लंबे समय तक सत्ता में रही पार्टी ने रेलवे के बुनियादी ढांचे पर लापरवाही बरत कर खड़ी की है। मोदी सरकार निवेश के माध्यम से मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार करना चाहती है। बीते पांच साल के कार्यकाल में सरकार ने दिखाया है कि हम वादे ले कर नहीं इरादे ले कर आए हैं। पूर्ववर्ती सरकारों की तरह रेल बजट के जरिये देश को गुमराह करने और वोटों की फसल काटने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।
जवाब में गोयल ने खासतौर पर कांग्रेस को निशाने पर लिया। उन्होंने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि हारने वालों का ध्यान मुश्किलों की तरफ तो जीतने वाले का ध्यान मंजिलों की तरफ होता है। रेल मंत्री ने कहा कि बुनियादी ढांचे का विस्तार और विकास किए बिना आजादी से साल 2014 तक महज 12000 किमी अतिरिक्त पटरी बिछाई गई। जबकि बीते महज 5 साल में 33000 किमी अतिरिक्त पटरी बिछाई गई।
यूपीए सरकार की तुलना में बीते पांच साल में दोहरीकरण, विद्युतिकरण, आमान परिवर्तन में 59 फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई। वर्ष 2007 में शुरू हुए डेटिकेटेट फ्रेट कॉरिडोर में 7 वर्षों तक 9000 करोड़ खर्च हुए और एक किलोमीटर की ट्रैक लिंकिंग नहीं हो पाई। जबकि बीते महज 5 वर्षों में 39000 करोड़ का निवेश और 1900 किलोमीटर ट्रैक लिंकिंग की गई।
सौवें वक्ता बने रेल मंत्री
बृहस्पतिवार को अनुदान मागों पर शुरू हुई चर्चा रात करीब 12 बजे तक चली। इस दौरान 99 सांसदों ने चर्चा में हिस्सा लिया। सदस्यों के नोटिस की संख्या को देखते हुए स्पीकर ने तड़के तीन बजे तक सदन चलाने का निर्णय लिया था। हालांकि कई सदस्यों के भाषण पटल पर रखने केकारण चर्चा तीन घंटे पूर्व ही समाप्त हो गई। शुक्रवार को जब रेल मंत्री ने जवाब देना शुरू किया तो वह सौवें वक्ता बन गए।