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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़े दे रहे गवाही, लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे कुछ डॉक्टर

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़े दे रहे गवाही, लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे कुछ डॉक्टर

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : bharat rajneeti
सोमवार को लोकसभा में पास हुए नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के कई प्रावधानों पर डॉक्टर कड़ा विरोध जता रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में भारी गड़बड़ी है जिसे तुरंत ठीक किए जाने की जरूरत है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सामने स्वास्थ्य क्षेत्र से आये मामलों को देखें तो यह बात प्रमाणित भी होती है कि लोगों के स्वास्थ्य अधिकारों का इस क्षेत्र में काम कर रहे अधिकारियों के द्वारा बड़े पैमाने पर हनन किया जा रहा है। 
एनएचआरसी ने अपनी जांच के दौरान वर्ष 2019 में अब तक 46 से ज्यादा केसों में स्वास्थ्य अधिकारियों के द्वारा भारी लापरवाही बरतने की बात पाई है। आयोग ने ऐसे अधिकारियों के द्वारा पीड़ित परिवारों को करोड़ों रुपये की क्षतिपूर्ति भी दिलवाई है। ऐसे कुल मामलों में जहां आयोग ने भ्रष्टाचार होना पाया है और क्षतिपूर्ति दिलवाई है, उसमें स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े मामलों की संख्या 18.11 फीसदी है। 

स्वास्थ्य सेवाओं में मरीजों की जान की गंभीरता को देखते हुए यह आंकड़ा गंभीर माना जा सकता है। जानकारी के अनुसार इसी वर्ष जनवरी में एनएचआरसी ने नौ केसों में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की भारी लापरवाही पाई थी और उसने पीड़ितों को लगभग 21 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दिलवाई थी। आयोग ने फरवरी में दो केसों में आठ लाख रुपये, मार्च में छह केसों में 10.50 लाख रुपये, अप्रैल में सात केसों में 27.10 लाख रुपये, मई में सात केसों में 22 लाख रुपये और जून माह में 15 केसों में 52.95 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दिलाने का आदेश दिया है। 

ये आंकड़े केवल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने पेश किए गए मामलों के हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य मानवाधिकार आयोगों और विभिन्न अदालतों के मामलों को भी जोड़ दिया जाए तो यह बहुत गंभीर समस्या का रूप धारण कर लेगी। स्वास्थ्य विभाग से जिस प्रकार की लापरवाहियां सामने आई हैं, उनमें डॉक्टरों की भूमिका के साथ-साथ अन्य सहयोगी स्वास्थ्य अधिकारियों के द्वारा की जा रही गड़बड़ी भी शामिल है। 

आयोग ने ऐसे मामलों में भी अधिकारियों को दोषी पाया है जिनमें मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं देने से बिना किसी उचित वजह के इनकार कर दिया गया था। टेस्ट करने से इनकार करना, सरकारी अस्पतालों के अधिकारियों के द्वारा प्राइवेट संस्थानों से टेस्ट कराने की अनुचित मांग और अधिकारियों का अपनी ड्यूटी पर उपलब्ध न होने जैसी अनेक गंभीर गड़बड़ी सामने आई है। 

क्या कहते हैं डॉक्टर

स्वास्थ्य अधिकारियों के द्वारा बरती जा रही लापरवाही, और मरीजों और डॉक्टरों के बीच बढ़ती मुकदमेबाजी पर वरिष्ठ हार्ट एंड लंग्स स्पेशलिस्ट डॉ. संदीप अटावर का कहना है कि सभी मेडिकल प्रोफेशनल्स के द्वारा अपनी भूमिका को उचित ढंग से निर्वाह किया जाना चाहिए क्योंकि यह ऐसा पेशा है जिससे सीधे तौर पर लोगों की जिंदगी जुड़ी होती है। 

डॉ. संदीप अटावर के मुताबिक़, कई बार मरीजों के रिश्तेदार इलाज के दौरान की भारी तकनीकी परेशानी को नहीं समझते हैं जो बाद में उनके और डॉक्टरों के बीच विवाद की वजह बनती है। इससे बचने के लिए डॉक्टर समुदाय को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता बरतनी चाहिए। 

कठिन मामलों में मरीजों के रिश्तेदारों को इलाज की दूसरी या तीसरी डॉक्टर ओपिनियन लेने की सलाह दी जानी चाहिए जिससे मरीजों को यह लगे कि उनका वही इलाज उचित है जो किया जा रहा है। इससे दोनों के बीच रिश्ते सुधरेंगे। 

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