तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश, सरकार बोली- राजनीति के चश्मे से न देखें
तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश - फोटो : bharat rajneeti
राज्यसभा में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक बिल पेश किया। बीते हफ्ते ही यह बिल लोकसभा से पास हुआ था। तीन तलाक बिल पर लगभग चार घंटे तक चर्चा होने की उम्मीद है। केंद्रीय मंत्री प्रसाद ने कहा कि 20 से अधिक देशों में तीन तलाक बैन है इसलिए इस कानून को राजनीति के चश्मे से न देखें।
तीन तलाक के सुगमता से पास होने के आसार, विपक्षी फूट से सरकार को जगी आशासूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक राज्यसभा में भारी बहुमत से पारित होने के बाद अब सरकार की कोशिश तीन तलाक विधेयक को भी इसी तरह पारित कराने की है। राज्यसभा में सरकार का स्पष्ट बहुमत अब भी नहीं है, वहीं जनता दल यू जैसे सहयोगियों ने इस विधेयक का विरोध करने का एलान कर सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। लेकिन, सरकार को आशा है कि विपक्षी दलों के बिखराव की वजह से उसे राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पारित कराने में कठिनाई नहीं होगी।आरटीआई विधेयक पर राज्यसभा में हुई वोटिंग में सरकार के पक्ष में 117 वोट पड़े और विरोध में महज 75 वोट ही पड़े जबकि गैर-एनडीए दलों के सांसदों की संख्या 127 है। इनमें से यूपीए के सांसदों की संख्या 67 है। लेकिन, यूपीए के कई दलों के वोटिंग से दूर रहने की वजह से सरकार ने भारी अंतर से यह विधेयक पारित करा लिया। टीआरएस, बीजद और टीडीपी ने विधेयक को प्रवर समिति को भेजने के तृणमूल कांग्रेस के प्रस्ताव पर दस्तखत करने के बावजूद सरकार के पक्ष में वोट दिया जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस के सांसदों ने संसद में मौजूद होने के बावजूद वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
कांग्रेस के कई साथी बाहर रहे
जिस समय राज्यसभा में इस बिल पर वोटिंग हो रही थी, लगभग उसी समय राज्यसभा के सभापति एम वेंकैय्या नायडू के कक्ष में नामांकित सांसद नरेंद्र जाधव की किताब का विमोचन हो रहा था। एनसीपी की सांसद वंदना चव्हाण को वोटिंग में भाग लेने की बजाए किताब के विमोचन समारोह में शामिल होना बेहतर लगा। यही नहीं, एनसीपी प्रमुख शरद पवार सहित पार्टी के एक भी सांसद ने वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया।
वहीं, कांग्रेस के एक और साथी दल द्रमुक के नेता तिरुचि शिवा भी वोटिंग छोड़कर दो दिनों तक कोलकाता में डटे थे। उनका प्रयोजन करुणानिधि की मूर्ति के अनावरण समारोह में शामिल होने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आमंत्रित करना था।
अन्य दलों की हालत
सपा के 12 में से केवल पांच सांसद ही उस दिन राज्यसभा में मौजूद थे। उनमें से भी केवल दो ने विधेयक के खिलाफ वोट दिया जबकि तीन ने पक्ष में वोटिंग की। इसी तरह बसपा का एक भी सांसद वोटिंग में शामिल नहीं हुआ।
विपक्षी बिखरे
विपक्ष में बिखराव दिखने लगा है। विपक्षी एकता की कर्णधार बनने वाली तृणमूल कांग्रेस अब एकला चलो रे की नीति अपना रही है। उसके नेता डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि दूसरे क्षेत्रीय राजनीतिक दल भाजपा के दबाव में आ गए। भाजपा नेताओं ने तेलगू देशम, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल के शीर्ष नेताओं से संपर्क कर उनके सांसदों को विधेयक का समर्थन करने के निर्देश जारी करा दिए।