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मंगलवार, 13 अगस्त 2019

दुष्कर्म के लंबित मामलों से निपटने के लिए 2 अक्तूबर से शुरू हो सकती हैं विशेष अदालतें

दुष्कर्म के लंबित मामलों से निपटने के लिए 2 अक्तूबर से शुरू हो सकती हैं विशेष अदालतें

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : डेमो

खास बातें

  • विधि मंत्रालय ने दी जानकारी, 1023 फास्ट ट्रैक अदालतों का होना है गठन
  • विशेष अदालतों के गठन के लिए 767.25 करोड़ रुपये के बजट का प्रस्ताव दिया है
  • यह कानून बच्चों के यौन दुर्व्यवहार से निपटने के लिए है
केंद्रीय विधि मंत्रालय ने कहा है कि देशभर में लंबित पड़े दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई के लिए 1023 फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन का काम 2 अक्तूबर से शुरू हो सकता है। मंत्रालय में न्याय विभाग ने इन विशेष अदालतों के गठन के लिए 767.25 करोड़ रुपये के बजट का प्रस्ताव दिया है। 
साथ ही निर्भया फंड के तहत एक साल के लिए 474 करोड़ रुपये की केंद्रीय मदद मिलेगी। इस फंड का एलान 2013 में केंद्र सरकार ने दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को एक छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के बाद किया था। कैबिनेट सचिवालय को 8 अगस्त को लिखे खत में न्याय विभाग ने कहा है कि 11 जुलाई को व्यय वित्त समिति की सिफारिश और कानून मंत्री की स्वीकृति मिलने के बाद इस मामले को मंजूरी के लिए वित्त मंत्रालय के पास भेजा गया है। 

विभाग ने लिखा कि इसके साथ अन्य संबंधित कदम उठाए जा रहे हैं क्योंकि 2 अक्तूबर 2019 से फास्ट ट्रैक अदालतों को शुरू करने की योजना है। इससे पहले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि पहले चरण में नौ राज्यों में इस तरह की 777 अदालतें गठित की जा सकती हैं और दूसरे चरण में 246 अदालतों का गठन होगा। 

संसद ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून में संशोधनों को मंजूरी दी थी। यह कानून बच्चों के यौन दुर्व्यवहार से निपटने के लिए है। संशोधित कानून में बच्चों के यौन शोषण के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान शामिल किया गया है। 

अदालतों में अटके हैं बच्चों से दुष्कर्म के डेढ़ लाख मामले

बच्चों से दुष्कर्म के करीब डेढ़ लाख मामले ऐसे हैं जो आज भी अदालतों में अटके पड़े हैं। डेढ़ लाख परिवार ऐसे हैं जो साल 2012 से इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं, जब पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत बनाई गई विशेष अदालतों में दाखिल किए गए थे। इन विशेष अदालतों को इसलिए बनाया गया था कि ऐसे मामलों में फैसला जल्दी सुनाया जा सके। लेकिन जैसा कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, 'इसमें बुनियादी गड़बड़ है।'

जिस जिले में ऐसे मामले 100 से ज्यादा वहां बनेगी पॉक्सो कोर्ट

यह आंकड़ा सामने तब आया जब मुख्य न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने देश में बच्चों से दुष्कर्म के बढ़ते मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री और अदालत की ओर से नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने इससे संबंधित रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के साथ साझा की। 

इस पर हैरानी जताते हुए पीठ में शामिल न्यायाधीश दीपक गुप्ता और न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस ने केंद्र सरकार को ऐसे जिलों में जहां 100 से ज्यादा ऐसे मामले लंबित हैं वहां एक पॉक्सो अदालत का गठन किया जाए। पीठ ने इसके लिए केंद्र को दो महीने का समय दिया है।

कोलेजियम इतना बड़ा मुद्दा नहीं जितना कि ये : सुप्रीम कोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश में 670 अदालतों में पॉक्सो अपराधों के डेढ़ लाख मामले हैं। औसत निकाला जाए तो हर एक जज को रोजाना 224 मामलों में फैसला सुनाना होगा। अगर इस हिसाब से फैसले आने भी लगे तब भी अब तक के सभी मामलों में फैसला सुनाने में छह साल और लग जाएंगे, आने वाले समय में जो मामले आएंगे वह अलग। इसी का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा था कि हमारे लिए कोलेजियम उतना बड़ा मुद्दा नहीं है, जितना कि ऐसे मामले।   


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