कैसे सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान से भारत आने में की थी उजमा अहमद की मदद, जानिए पूरी कहानी

खास बातें
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उजमा अपने देश भारत लौटीं। अपनी वापसी पर उजमा ने कहा, "पाकिस्तान जाना तो आसान है, लेकिन वहां से वापस लौटना बहुत मुश्किल है। पाकिस्तान मौत का कुंआ है।" उजमा को भारतीय उच्चायोग तक लाना भी उतना आसान नहीं था। इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में काम करने वाले एक दंपति ने खुद को उजमा का भाई-भाभी बताया, ताकि अली को विश्वास में लिया जा सके और वह उजमा को भारतीय उच्चायोग लेकर आए।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस मामले में कहा था कि "उजमा ने अली से कहा था कि वह भारतीय उच्चायोग से अपने रिश्तेदारों से अली के लिए कुछ पैसे ला सकती है। ये तरीका काम किया, क्योंकि अली एक लालची व्यक्ति था।"
जब उजमा डिप्टी हाई कमिश्नर जेपी सिंह के पास पहुंचीं तो अली बाहर ही इंतजार कर रहा था। वहां से सुषमा स्वराज को फोन किया गया, लेकिन वो एक मीटिंग में व्यस्त थीं। जिसके बाद सिंह ने उजमा के लिए दूतावास में ही रात को रहने का इंतजाम किया। जब अगले दिन स्वराज से संपर्क किया गया, तो उनका तात्कालिक निर्देश एक भारतीय नागरिक के रूप में उजमा को सत्यापित करना था। उजमा के पासपोर्ट की जांच की गई और उसमें दिए गए उनके भाई के घर के पते को भी जांचा गया।
जब उजमा को लेकर सभी बातें साफ हो गईं, तो दूतावास के अधिकारियों को स्वराज से आदेश मिला। जिसमें कहा गया, "भले ही हमें उन्हें (उजमा) एक या दो साल दूतावास में रखना पड़े, हम करेंगे।"
इसके बाद अगले दिन दूतावास के अधिकारियों ने पाकिस्तानी अधिकारियों से संपर्क किया, जिन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। हालांकि, ये वो समय था जब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने कुलदीप जाधव की फांसी पर रोक लगा दी थी और अली भी कानूनी लड़ाई की योजना बना रहा था। उतने ही दूतावास के अधिकारी इस मामले को लेकर 12 मई को इस्लामाहाद हाईकोर्ट गए।
इसी बीच उजमा अली से परेशान हो गईं। अली भारतीय दूतावास के आसपास अपने चार सहयोगियों के साथ घूमता रहता था। वह इमारत की रखवाली करने वाले गार्डस को राइफल दिखाता था। उजमा कहती थीं कि वह वापस अली के पास नहीं जाना चाहती हैं। वह कहती थीं कि वह इससे अच्छा जहर खा लेंगी।
इसके बाद इस्लामाबाद हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और उजमा को वापस भारत जाने की इजाजत मिल गई। हालांकि सुषमा चाहती थीं कि उजमा तुरंत भारत आ जाएं, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। वाघा बॉर्डर का दरवाजा बंद होने से महज एक घंटे पहले दोपहर ढाई बजे ही भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को हाईकोर्ट के आदेश की सर्टिफाइड कॉपी मिली थी।
सुषमा ने कहा था कि वह नहीं चाहतीं कि उजमा को अब और परेशानी हो। भारत लौटने पर उजमा ने कहा, "मैं यहां केवल सुषमा स्वराज मैम की वजह से हूं। उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, उनकी बेटी हूं और मुझे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। इन शब्दों ने मुझे तब ताकत दी, जब मैं अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी।"
उजमा ने वापस लौटकर कहा था कि "यदि मैं वहां कुछ दिन और रहती तो मुझे मार दिया जाता या बेच दिया जाता। धोखे से निकाह के बाद बुनेर ले जाया गया। वहां कई लड़कियां हैं, जो पता नहीं कहां कहां से लाई गई हैं। बुनेर के ज्यादातर मर्द मलयेशिया में रहते हैं। वे वहां रहकर लड़कियों को फंसाते हैं और फिर उन्हें बुनेर ले आते हैं। बुनेर बेहद खतरनाक इलाका है।"