सुषमा स्वराज ने पांच साल के कार्यकाल में बदल दिया विदेश मंत्रालय में काम का ढर्रा
सुषमा स्वराज - फोटो : bharat rajneeti
पहले विदेश मंत्रालय अंग्रेजीदां हुआ करता था, लेकिन सुषमा स्वराज के विदेश मंत्री बनने के बाद ने इसके ढंग-ढर्रे में काफी बदलाव आए। विदेश मंत्रालय में हिंदी का चलन, हिंदी के अखबारों चैनलों में समाचारों की बाढ़ और जनता से मंत्रालय के लगाव का जज्बा सुषमा स्वराज ने ही पैदा किया। विदेश में किसी भी कोने में फंसे भारतीय को राहत दिलाना, उसके दुख-दर्द को समझना और मंत्रालय को इसके लिए संवेदनशील बनाने की पहल भी सुषमा स्वराज ने ही की।
हार्ट ऑफ एशिया में जीता नवाज शरीफ की मां का दिलसुषमा स्वराज दिसंबर 2015 में हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में भाग लेने पाकिस्तान गई थीं। तब वह तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के परिवार के अनुरोध पर उनके घर भी गईं। वहां पंजाबी बोलकर सुषमा स्वराज ने नवाज शरीफ के परिवार का दिल जीत लिया था।
मरियम नवाज से सुषमा की नजदीकी काफी बढ़ी और भारत-पाकिस्तान के बीच में शांति प्रक्रिया का करीब-करीब रोड-मैप तैयार कर वह नई दिल्ली लौटी थीं। लेकिन यह शांति प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर आतंकी हमला हो गया।
विषय की समझ और पक्ष को रखने का निराला अंदाजनब्बे का दशक याद होगा, जब वह भाजपा के कठिन दौर में प्रवक्ता बनाई गई थीं। प्रवक्ता के तौर पर कामकाज ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया। संसद भवन में लोकसभा में विपक्ष की नेता के तौर पर सुषमा स्वराज की अपनी एक शैली थी। विपक्ष की नेता रहते हुए उन्होंने तत्कालीन यूपीए सरकार को अपने कौशल से घेर रखा था।
दरअसल सुषमा स्वराज का अपना पक्ष रखने का अंदाज निराला था। इसकी एक बड़ी वजह विषय की समझ थी। सुषमा अच्छा खासा होमवर्क करती थीं। यही वजह रही कि चाहे राजनीति हो या स्वास्थ्य मंत्रालय, दिल्ली के मुख्यमंत्री का प्रभार हो या विदेश मंत्रालय सुषमा एक अलग छाप छोड़ने में सफल रहीं।
sushma swaraj - फोटो : bharat rajneeti
कोई सीख ले मुद्दा बनाना...सिर मुड़ाऊंगी, भुने चने खाऊंगी...सफेद साड़ी
2004 में लोकसभा चुनाव का नतीजा याद होगा। संभावना बलवती थी कि देश की बागडोर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संभालेंगी। बस, फिर क्या था। सुषमा स्वराज ने एक आंदोलन का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी यदि देश की प्रधानमंत्री बनती हैं तो वह अपना सिर मुंड़वा लेंगी, भुने चने खाएंगी और जमीन पर ही सोएंगी और सफेद साड़ी पहनेंगी।
सुषमा ने यह संकल्प लेने की वजह बाद में बताई भी थी। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि भारत 125 करोड़ लोगों का देश है और उनके लिए शर्म की बात थी कि इतने बड़े देश में कांग्रेस पार्टी को एक भारतीय प्रधानमंत्री नहीं मिल रहा था।
लोगों को संबोधित करतीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज - फोटो : bharat rajneeti
स्पष्टवादी थीं सुषमा स्वराज
सुषमा स्वराज स्वभाव से स्पष्टवादी थीं। वह भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को पिता समान मानती थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इशारा देख नरेंद्र मोदी का रास्ता प्रशस्त कर रहे थे। आडवाणी इससे असहज हो रहे थे।
यह असहजता केंद्र के कई नेताओं के साथ थी, लेकिन कोई बोल नहीं रहा था। लेकिन सुषमा के मिजाज में कुछ और लिखा था। उन्होंने भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में खुलकर विरोध कर दिया। सुषमा स्वराज ने कहा कि नरेंद्र मोदी को रास्ता देकर बाद में सब पछताओगे। उन्होंने यहां तक कहा कि लिख लीजिए मेरा डिसेंट नोट। इसे रिकॉर्ड पर रख लीजिए।
sushma swaraj :bharat rajneeti
एक और वाकया याद कीजिए
एक और वाकया याद कीजिए। यूपीए सरकार पीजे थॉमस को देश का सतर्कता आयुक्त बनाना चाह रही थी। थॉमस का नाम 90 के दशक के एक घोटाले से जुड़ा था। लिहाजा सुषमा ने उनके नाम का विरोध किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने थॉमस के नाम को मंजूरी दे दी। वह सीवीसी भी बने, लेकिन सुषमा ने वहां भी डिसेंट नोट लिखा और अंत में उनके इसी नोट के आधार पर थॉमस को बीच में ही पद छोड़ना पड़ा।