
बता दें कि 14 दिसंबर, 2018 को 36 राफेल जेट विमानों के सौदे को बरकरार रखने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की गई थी। वहीं सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के फैसले के खिलाफ भी दायर की गई समीक्षा याचिकाओं का भी शीर्ष कोर्ट अपना फैसला देकर निपटारा करेगा।
इन दो मामलों के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी की ओर से दर्ज कराए गए मानहानि मामले में भी फैसला आएगा। कारण कि इसे शीर्ष कोर्ट ने राफेल सौदा मामले की समीक्षा याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था। क्योंकि इस मामले में राहुल गांधी के राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ की गई टिप्पणी का उल्लेख था।
भाजपा नेता लेखी ने अपनी शिकायत में कहा था कि राहुल गांधी ने अपने भाषणों में 'चौकीदार चोर है' का नारा देकर प्रधानमंत्री मोदी का अपमान किया है। वहीं इस मामले की सुनवाई में शीर्ष अदालत ने भी राहुल गांधी को गलत ठहराया था, जिसके बाद कांग्रेस नेता ने अदालत से माफी भी मांगी थी।
यह है फैसला आने की वजह
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े उनकी जगह लेंगे। ऐसे में देश के अहम मुद्दों से जुड़े मामलों में फैसलों की उम्मीद जताई जा रही थी। इसी क्रम में अयोध्या विवाद मामले पर शीर्ष अदालत का फैसला आ चुका है।क्या है राफेल मामला
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई गोगोई की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच राफेल सौदा मामले पर फैसला सुनाने वाली है। बेंच में जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ हैं।बता दें राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 को दिए अपने फैसले में भारत की केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। हालांकि इस फैसले की समीक्षा के लिए अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं और 10 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
फ्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट के भारत के सौदे को चुनौती देने वाली जिन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, उनमें पूर्व मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की याचिकाएं शामिल थीं। सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उसके पिछले साल के फैसले की समीक्षा करने की अपील की थी।
क्या है सबरीमला मंदिर मामला
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को भारत के दक्षिण भारतीय राज्य केरल स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भी अपना आखिरी फैसला सुनाएगा। वैसे तो सर्वोच्च अदालत ने 28 सितंबर, 2018 के फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दे दिया था।हालांकि इस फैसले की समीक्षा के लिए 60 याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों वाली पीठ ने छह फरवरी 2019 को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
काफी लंबी-चौड़ी बहस हुई
बता दें कि 28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाखुश कई संस्थाओं और समूहों ने इसकी समीक्षा के लिए याचिकाएं दायर कीं। फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी (एनएसएस) और मंदिर के तंत्री (पुजारी) भी शामिल हैं।
सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भारत में काफी लंबी-चौड़ी बहस हुई है। मासिक धर्म से गुजरने वाली महिलाओं को मंदिर में न जाने दिए जाने को महिलावादी और प्रगतिशील संगठनों ने महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन बताया है।
वहीं, कई धार्मिक संगठनों की दलील है कि चूंकि अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं, इसलिए 10-50 वर्ष की महिलाओं को उनके मंदिर में जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।