
झारखंड विधानसभा चुनाव में अगर भारतीय जनता पार्टी और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) साथ चुनाव लड़े होते तो राज्य में हेमंत सरकार नहीं बन पाती। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह जानकारी सामने आई कि ये दोनों पार्टियां मिलकर 81 सीटों वाले राज्य में आसानी से 40 पर जीत हासिल कर सकते थे।
झारखंड में बहुमत के लिए 41 सीटें जीतना जरूरी है। यदि भाजपा और आजसू के बीच गठबंधन होता तो झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन 34 सीटें ही जीत पाती। ऐसी स्थिति में भाजपा और आजसू मिलकर सरकार बना लेती।
भाजपा को विधानसभा चुनाव में अकेले 33.4 फीसदी मत मिले, वहीं आजसू को 8.1 फीसदी मत मिले। दोनों के मत प्रतिशत को मिला लें तो यह आंकड़ा 41.5 फीसदी पहुंच जाता है। जबकि, विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामूमो) को 18.7 फीसदी, कांग्रेस को 13.9 फीसदी और राष्ट्रीय जनता दल को 2.7 फीसदी मत मिला। मतलब झामूमो गठबंधन को 35.3 फीसदी ही मत मिला।

मतदान के प्रतिशत में इस अंतर से स्पष्ट होता है कि अगर भाजपा और आजसू साथ मिलकर चुनाव लड़े होते तो झारखंड विधानसभा में दोनों पार्टियों के सीटों की स्थिति कुछ और होती। इससे न केवल भाजपा बल्कि आजसू के सीटों में भी इजाफा होता।
साथ लड़ते तो भाजपा नौ सीटें और जीतती
दोनों दलों के साथ चुनाव लड़ने पर भाजपा को नौ सीटों का फायदा होता जबकि आजसू चार सीटें और जीत जाती। तब दोनों दल मिलकर राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में भी आ जाते।भाजपा आजसू गठबंधन का छोटे दलों पर नहीं पड़ता फर्क
भाजपा आजसू गठबंधन का बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), सीपीआई (एमएल) और निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई सीटों में कोई फर्क नहीं पड़ता।