क्यों लड़ते रहते हैं अमेरिका और ईरान, जानिए - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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बुधवार, 8 जनवरी 2020

क्यों लड़ते रहते हैं अमेरिका और ईरान, जानिए

क्यों लड़ते रहते हैं अमेरिका और ईरान, जानिए
सारअमेरिका और ईरान के बीच विवाद की शुरुआत आज से 66 साल पहले हुई थी। जिसके बाद समय-समय पर इसमें नए घटनाक्रम जुड़ते गए। जानिए वो चार ऐतिहासिक घटनाक्रम जिसने ईरान और अमेरिका में युद्धोन्माद को भड़काया

विस्तार
अमेरिका और ईरान के बीच दशकों से जारी विवाद फिर गहराने के साथ ही मध्य पूर्व में युद्ध के बादल मडराने लगे हैं। अमेरिका ने गुरुवार को इराक में एयर स्ट्राइक कर शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को मार गिराया। जिसके बाद से इराक स्थित अमेरिकी दूतावास पर दो बार रॉकेट हमला हो चुका है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वह बदले की कार्रवाई करेगा तो उसे तबाह कर दिया जाएगा।

मंगलवार देर रात ईरान ने पलटवार करते हुए इराक में स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर कम से कम एक दर्जन रॉकेट दागे। हालांकि इन हमलों में अमेरिका को कितना नुकसान हुआ है इसकी सटीक आकलन नहीं किया जा सका है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि सब ठीक है।

1- 1953 का तख्तापलट

ईरान-अमेरिका दुश्मनी की शुरुआत 1953 में हुई जब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन की एमआई-6 के साथ मिलकर ईरान में तख्तापलट करवाया। दोनों खुफिया एजेंसियों ने अपने फायदे के लिए ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को सत्ता से बेदखल कर ईरान के शाह रजा पहलवी को गद्दी पर बैठा दिया। इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने लंबे समय तक ईरानी तेल का व्यापार कर फायदा कमाया। जबकि मोहम्मद मोसादेग तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे।

किसी विदेशी नेता को शांतिपूर्ण वक्त में अपदस्थ करने का काम अमेरिका ने पहली बार ईरान में किया था। लेकिन यह आखिरी नहीं था। इसके बाद अमेरिका की विदेश नीति का यह एक तरह से हिस्सा बन गया।

2- 1979 की ईरानी क्रांति

1953 में ईरान में अमेरिका ने जिस तरह से तख्तापलट किया उसी का नतीजा 1979 की ईरानी क्रांति थी। अमेरिका ने 1979 में ईरान के शाह रजा पहलवी को लोकतंत्र के नाम पर सत्ता से हटाकर अयतोल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी को सत्ता पाने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद की। 1 फरवरी 1979 को अयतोल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ईरान लौटे और सत्ता संभाली। 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति से पहले खुमैनी तुर्की, इराक और पेरिस में निर्वासित जीवन जी रहे थे। खुमैनी, शाह पहलवी के नेतृत्व में ईरान के पश्चिमीकरण और अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता के लिए उन्हें निशाने पर लेते थे।

सत्ता में आने के बाद उग्र क्रांतिकारी खुमैनी की उदारता में अचानक से परिवर्तन आया। उन्होंने खुद को वामपंथी आंदोलनों से अलग कर लिया और विरोधी आवाजों को दबाना तथा कुचलना शुरू कर दिया। क्रांति के परिणामों के तत्काल बाद ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म हो गए।

3- दूतावास संकट

ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म होने के बाद 1979 में तेहरान में ईरानी छात्रों के एक समूह ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में लेकर 52 अमेरिकी नागरिकों को एक साल से ज्यादा समय तक बंधक बनाकर रखा था। कहा तो यह भी जाता है कि इस घटना को खुमैनी का मौन समर्थन प्राप्त था।

इन सबके बीच सद्दाम हुसैन ने 1980 में ईरान पर हमला बोल दिया। ईरान और इराक के बीच आठ सालों तक युद्ध चला। इसमें लगभग पांच लाख ईरानी और इराकी सैनिक मारे गए थे। इस युद्ध में अमेरिका सद्दाम हुसैन के साथ था। यहां तक कि सोवियत यूनियन ने भी सद्दाम हुसैन की मदद की थी।

4- 2015 का अमेरिका-ईरान परमाणु समझौता

अमेरिका और ईरान के संबंधों में जब कड़वाहट कुछ कम होती दिखी तब तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2015 में ज्वॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन बनाया था। इसके बाद ईरान के साथ अमेरिका ने परमाणु समझौता किया, जिसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की। लेकिन, ट्रंप ने सत्ता में आते ही एकतरफा फैसला लेते हुए इस समझौते को रद्द कर दिया। साथ ही ईरान पर कई नए प्रतिबंध भी लगा दिए गए।

ट्रंप ने न केवल ईरान पर प्रतिबंध लगाए बल्कि दुनिया के देशों को धमकी देते हुए कहा कि जो भी इस देश के साथ व्यापार जो करेगा वो अमेरिका से कारोबारी संबंध नहीं रख पाएगा। इससे अमेरिका और यूरोप के बीच भी मतभेद सामने आ गए।

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