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गुरुवार, 22 जुलाई 2021

How safe are the schools now : आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया से समझिए भारत में प्राइमरी स्कूल खुले तो क्या होगा, इस्राइल से जानिए हाई स्कूल खुले तो क्या हुआ था?

20 जुलाई को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव ने जब ऐसा कहा कि प्राइमरी स्कूलों को खोला जा सकता है तो सबके मन में एक ही सवाल है। क्या जब भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना के केस फिर से बढ़ रहे हैं तो क्या ऐसे में स्कूलों का खोलना उचित है?
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव ने स्कूल खोलने की हिमायत करते हुए यूरोप के देशों का उदाहरण दिया था, लेकिन महामारी को देखते हुए निश्चित रूप से अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। हालांकि कई राज्यों ने स्कूलों को दोबारा खोले जाने की घोषणा कर दी है।

अभिभावकों की चिंता का कारण

आईसीएमआर ने मंगलवार को चौथे सीरो सर्वे के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि 28,975 लोगों पर किए गए सर्वे में शामिल 67.6% लोगों में कोविड एंटीबॉडी मिल चुका है। इस सर्वे में 6 से 9 साल के 2,892 बच्चे, 10 से 17 साल के 5,799 बच्चों को शामिल किया गया था। जिनमें से आधे से ज्यादा बच्चों में एंटीबॉडी पाई गई यानी कोरोना संक्रमण से बच्चे भी प्रभावित हुए। ऐसे में अभिभावकों को डर है कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच स्कूलों का खुलना कितना सुरक्षित है?

छोटे बच्चों में बड़े के मुकाबले संक्रमित होने का खतरा कम

बलराम भार्गव ने प्राइमरी स्कूल खोलने के पीछे का तर्क देते हुए कहा था कि कोरोना की लड़ाई में बच्चे वयस्कों के मुकाबले संक्रमण से ज्यादा अच्छी तरह से लड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि यूरोप के कई देशों ने कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच भी प्राइमरी स्कूलों को बंद नहीं किया था। इसलिए शुरूआत में प्राइमरी स्कूल खोले जा सकते हैं और उसके बाद सेकंडरी स्कूल खोले जाएं।

कई रिसर्च में साबित हुआ है कि छोटे बच्चों में बड़ों के मुकाबले कोरोना संक्रमित होने का कम खतरा रहता है। उन्हें जब संक्रमण होता भी है तो आमतौर पर अधिकांश मामलों में हल्के लक्षण होते हैं। अब तक के साक्ष्य यही बताते हैं कि एक बच्चा शायद ही किसी को संक्रमित कर सकता है, हां लेकिन एक व्यस्क जरूर एक बच्चे को आसानी से संक्रमण का शिकार बना सकता है। कोरिया में बच्चों पर हुए अध्ययन से भी यह पता चला है कि संक्रमित बच्चों से वायरस फैलने की संभावना कम होती है।

डब्ल्यूएचओ के पश्चिमी प्रशांत के क्षेत्रीय निदेशक ताकेशी कासाई और पूर्वी एशिया और प्रशांत के लिए यूनिसेफ के क्षेत्रीय निदेशक करिन हल्शॉफ का मानना है कि विश्व स्तर पर, बच्चों में कोरोना संक्रमण के मामलों का अनुपात बहुत कम है। प्राथमिक-विद्यालय में पढ़ने वाले और उससे कम उम्र के बच्चों के संक्रमित होने की सबसे कम संभावना है। और यहां तक कि जब वे बीमार भी पड़ते हैं तो, तब भी उनमें वयस्कों की तुलना में हल्के लक्षण होते हैं। यही वजह है कि बहुत मामूली संख्या में बच्चों को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आई या संक्रमण से उनकी मौत हुई।

ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड में हुए सर्वे क्या कहते हैं

ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि प्रारंभिक कक्षाओं के स्कूलों में कोरोना संक्रमण फैलने का दर बहुत कम पाया गया है। नेशनल सेंटर फॉर इम्यूनाइजेशन रिसर्च एंड सर्वलायंस और सिडनी यूनिवर्सिटी ने न्यू साउथ वेल्स ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग के सहयोग से 26 सिंतबर 2020 से दिसंबर 2020 तक प्राइमरी स्कूलों में एक शोध किया। शोध मे देखा गया कि न्यू साउथ वेल्थ जिसकी जनसंख्या 8.1 मिलियन है जहां सर्वे के दौरान कोरोना के 555 मामले थे। 24 कोरोना रोगियों की उम्र 18 साल थी। जबकि इस दौरान प्राइमरी और प्रारंभिक बाल देखभाल केंद्र खुले हुए थे और 88 फीसदी बच्चों की उपस्थिति बनी हुई थी।

भारत में महामारी के दौरान कुछ अध्ययनों में कहा गया था कि अकेले स्कूल बंद होने से केवल 2-4 फीसदी मौतों को ही रोका जा सकेगा। इन विश्लेषणों से पता चलता है कि छोटे बच्चों के स्कूलों में कोरोना संक्रमण के सामुदायिक प्रसारण का खतरा कम रहता है। फिर भी एहतियातन यहां स्कूल बंद रखे गए।

अमेरिका- इस्राइल के हाईस्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का क्या हुआ?

अमेरिका का अनुभव यह बताता है कि 0-4 साल के समूह के बच्चों में संक्रमण फैलने की दर 5-17 साल के बच्चे के मुकाबले लगभग आधी रही। हां स्कूल में छोटे बच्चों और किशोर बच्चों के बीच घुलने से संक्रमण फैलने का खतरा जरूर बढ़ गया।

इस्राइल में भी ऐसा ही देखने को मिला। 13 मार्च 2020 में हाईस्कूल बंद कर दिए गए थे जिसे 17 मई 2020 को फिर खोल दिया गया था। यह वही समय था जब मई में इस्राइल में कोरोना की दूसरी लहर आ गई थी और उस समय वहां सरकार ने हाईस्कूल खोल दिया। स्कूल खुलने के ठीक कुछ दिन बाद 26 मई को पहला और 27 मई को कोरोना का दूसरा केस मिला। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में बच्चे संक्रमण का शिकार हो गए थे। छात्रों के संक्रमित होने की दर: 13.2% फीसदी रही और स्टाफ सदस्यों की 16.6%।

कोरोना की रफ्तार थोड़ा कम होने के बाद स्कूल दोबारा सितंबर 2020 में खोले गए जिससे फिर 15-19 साल के समूह में संक्रमण फिर बढ़ा। यहां किशोर बच्चों में केस बढ़ने को लेकर यह माना गया कि स्कूलों में कोरोना से बचाव के उचित उपाय नहीं किए गए। ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने देखा कि यदि संक्रमण रोकथाम की रणनीतियों का ठीक से पालन किया जाता है, तो स्कूल में भी संक्रमण से बचाव हो सकता है।

एशियन डेवलपमेंट बैंक की चेतावनी स्कूल बंद रहे तो बच्चों का सबसे ज्यादा नुकसान

एशियन डेवलपमेंट बैंक ने चेताया है कि लंबे समय तक स्कूल बंद रहने के कारण बच्चों में सीखने की क्षमता कम हो रही है। इससे भविष्य में छात्रों की उत्पादकता और आय को बहुत नुकसान होगा। 2030 के सतत विकास लक्ष्य को हासिल करना महामारी से पहले ही शिक्षा के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला था। अब, यूनिसेफ और यूनेस्को का अनुमान है कि लक्ष्यों से काफी दूर रहने के लिए शिक्षा बजट को कम से कम 7% बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

स्कूल खोलने को लेकर डब्ल्यूएचओ क्या कहता है?

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि बच्चों को सुरक्षित रखते हुए उनके सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए जिला आधारित रणनीति बनाई जाए और यह फैसला स्थानीय प्रशासन करे कि कहां स्कूल आंशिक खोलना है और कहां पूरी तरह बंद रखना है। डब्लूएएचओ का मानना है कि शैक्षणिक सुविधाओं को बंद करने पर तभी विचार किया जाना चाहिए जब कोई अन्य विकल्प नहीं बचा हो।

डब्ल्यूएचओ ने संक्रमण फैलने की दर के हिसाब से जिलों को चार श्रेणियों में बांटने का सुझाव दिया है।

1- बिना किसी मामले या छिटपुट मामलों वाले जिलों को सभी स्कूलों को खुला रखें और यहां कोरोना संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों को लागू करें।
2- जहां संक्रमण ज्यादा नहीं फैल रहा है उस जिले के अधिकांश स्कूलों को खुला रख सकते हैं।
3- उन क्षेत्रों में स्कूलों को बंद करने पर विचार कर सकते हैं, जहां सामुदायिक प्रसारण फैल रहा है।
4- सामुदायिक प्रसारण वाले जिलों में विशेष रूप से जहां अस्पताल में भर्ती होने और मौतों के मामले बढ़ रहे हों वहां स्कूल बंद कर देने चाहिए।

स्कूल खुलें तो क्या उपाय किए जाएं

डब्ल्यूएचओ का मानना है कि बच्चों में कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए इस तरह की खास रणनीति बनाने की जरूरत है।

1. बच्चों को कोरोना प्रोटोकॉल के बारे में समझाया जाए और उसका पालन कराया जाए।
2. मास्क का लगातार और सही उपयोग ( 2 वर्ष से अधिक उम्र के सभी बच्चों और 5 वर्ष से ऊपर के बच्चों के लिए जरूरी)।
3. स्क्रीनिंग समय-समय पर हो।
4. बेहतर वेंटिलेशन (उचित सुरक्षा सावधानियों के साथ, खिड़कियां खोली जाए)।
5. बार-बार हाथ धोना और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना।
6. बीमार होने पर घर पर रहना।
7. स्कूल की नियमित सफाई हो।
8. शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को टीकाकरण पूर्ण हो।
9. जहां तक संभव हो, 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चे एक दूसरे से कम से कम 1 मीटर की दूरी पर रहें।
10. जबकि शिक्षक और सहायक कर्मचारी दूसरे से और छात्रों से एक मीटर की दूरी पर रहें।

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