राजद्रोह कानून क्या होता है , ब्रिटेन में कब हुआ खत्म, ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून के बारे में समझिए पूरी बात - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

राजद्रोह कानून क्या होता है , ब्रिटेन में कब हुआ खत्म, ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून के बारे में समझिए पूरी बात



राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि आखिर इसे हटाया क्यों नहीं जा रहा। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद इस पर चर्चा तेज होने की उम्मीद है। दरअसल, यह कानून ब्रिटिश काल का है। इसे 1870 में लाया गया था। ब्रिटेन में इस कानून की बहुत आलोचना हुई थी। ब्रिटेन में भाषण और अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने में इसके प्रभाव को दर्ज किया गया और फिर भारत पर लागू किया गया। हालांकि, भारी विरोध के कारण 1977 में ब्रिटेन के विधि आयोग द्वारा अधिनियम को समाप्त करने का सुझाव देते हुए एक कार्य पत्र प्रकाशित किया गया था। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में राजद्रोह को खत्म करने के पीछे का प्रमुख तर्क अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण रहा है। सरकार के राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए राजद्रोह का संभावित दुरुपयोग भी राजद्रोह को खत्म करने का एक कारण बना।

राजद्रोह कानून क्या होता है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है। या ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।

सजा का प्रावधान क्‍या है

राजद्रोह गैर जमानती अपराध है। राजद्रोह के मामले में दोषी पाए जाने पर आरोपी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है।

छह साल में 326 केस दर्ज हुए

- केंद्र सरकार की एजेंसी एनसीआरबी ने धारा 124 ए के तहत दर्ज हुए केस का 2014 से 2019 तक का डेटा जारी किया है
- 2014 से 2019 तक 326 केस दर्ज हुए, जिनमें 559 लोगों को गिरफ्तार किया गया, हालांकि 10 आरोपी ही दोषी साबित हो सके

1891 में दर्ज हुआ था पहला केस

सर्वप्रथम इस कानून का प्रयोग वर्ष 1891 में एक अखबार के संपादक जोगेंद्र चंद्र बोस के विरुद्ध किया गया। उन पर आरोप था कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लेख लिखा था।

महात्मा गांधी पर दर्ज हुआ था राजद्रोह का केस

इस कानून के तहत वर्ष 1922 में महात्मा गांधी पर भी यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था। राजद्रोह का मुकदमा दायर होने के बाद उन्होंने कहा था, मैं जानता हूँ इस कानून के तहत अब तक कई महान लोगों पर मुकदमा चलाया गया है और इसलिए मैं इसे स्वयं के लिए इसे सम्मान के रूप में देखता हूं।

राजद्रोह-देशद्रोह कानून की नजर में समान

संवैधानिक नियमों के तहत राजद्रोह-देशद्रोह के मामलों में एक ही धारा लागू होती है। ऐसे सभी मामले धारा-124ए के तहत विचाराधीन होते है। सामान्य अर्थों में राजद्रोह का आशय विधि द्वारा स्थापित सरकार, नीति तथा प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध असंतोष की भावना फैलाने से है। जबकि देशद्रोह राष्ट्र के प्रति असम्मान, राष्ट्र की एकता – अखंडता के विरुद्ध किया गया कार्य तथा राष्ट्रीय संस्कृति और विरासत को पूर्णतया नकारना है। अतः राजद्रोह शासन के खिलाफ किया गया आचरण है, जबकि देशद्रोह राष्ट्र के खिलाफ।

राजद्रोह से जुड़े चर्चित मामले
वर्ष 1897: महारानी बनाम बाल गंगाधर तिलक

भारत की स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक बाल गंगाधर तिलक पर दो बार राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। सर्वप्रथम वर्ष 1897 में जब उनके एक भाषण ने कथित तौर पर अन्य लोगों को हिंसक व्यवहार के लिए उकसाया और जिसके परिणामस्वरूप दो ब्रिटिश अधिकारियों की मौत हो गई। इसके बाद वर्ष 1909 में जब उन्होंने अपने अखबार केसरी में एक सरकार विरोधी लेख लिखा।

वर्ष 1962 : केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य

यह मामला स्वतंत्र भारत की किसी अदालत में राजद्रोह का पहला मुकदमा था। इस मामले में पहली बार देश में राजद्रोह के कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई और मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने देश और देश की सरकार के मध्य के अंतर को भी स्पष्ट किया। बिहार में फॉरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य केदार नाथ सिंह पर तत्कालीन सत्ताधारी सरकार की निंदा करने और क्रांति का आह्वान करने हेतु भाषण देने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में अदालत ने स्पष्ट कहा था कि किसी भी परिस्थिति में सरकार की आलोचना करना राजद्रोह के तहत नहीं गिना जाएगा।

वर्ष 2012 : असीम त्रिवेदी बनाम महाराष्ट्र राज्य

विवादास्पद राजनीतिक कार्टूनिस्ट और कार्यकर्त्ता असीम त्रिवेदी वर्ष 2010 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उनके कई सहयोगियों का मानना था कि असीम त्रिवेदी पर राजद्रोह का आरोप भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान के कारण ही लगाया गया है।

विनोद दुआ समेत कई पर लग चुका है राजद्रोह कानून

क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि, डॉ. कफील खान से लेकर शफूरा जरगर तक ऐसे कई लोग हैं जिन्हें राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। हाल में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर दर्ज राजद्रोह के मुकदमे को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। तब उसने यह भी कहा था कि नागरिकों को प्राधिकारियों की ओर से उठाए गए कदमों या उपायोग की आलोचना का अधिकार मिला हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस कानून के बने रहने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, 'राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राजद्रोह कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए जा सकते हैं। उन्होंने प्रावधान की वैधता का बचाव किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे वक्त में जब पुराने तमाम कानूनों को हटाया जा रहा है, तब इसकी क्या जरूरत है।

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