Kalyan Singh के समर्थक उन्हें 'बाबू जी' के नाम से सम्बोधित करते थे। यह पदवी उन्हें उनके व्यवहार और नेतृत्व की अलग शैली ने दिलाई थी। अपने लोगों के लिए वह अभिभावक की तरह ही थे और हर वक्त तैयार खड़े रहते थे। इसी खूबी ने उन्हें अलीगढ़ के अतरौली से प्रदेश और देश की राजनीति में चमका दिया। राममंदिर आंदोलन और बाबरी ढांचा विध्वंस के दौरान एक वक्त आया जब समाचार माध्यमों के जरिए वह पूरी दुनिया में छा गए।
उनके राजनीति सफर की शुरुआत अतरौली से हुई थी लेकिन जल्द ही वह सियासत की दुनिया के धुरंधर बन गए। उन्होंने राजनीति के अखाड़े में बड़े-बड़ों को पटखनी दी और कई रिकार्ड तोड़ डाले। कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को अतरौली के मढ़ौली गांव में हुआ था। यहीं से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक रहे ओमप्रकाश ने उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रेरित किया। कल्याण 1967 में, अतरौली विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक चुने गए। लगातार 13 साल 1980 तक वह यहां से विधायक रहे। 1991 में यूपी सीएम के पद पर उनकी ताजपोशी हुई। 1997 में वह दोबारा मुख्यमंत्री बने। लेकिन 1999 में उन्होंने भाजपा छोड़कर नई पार्टी (राष्ट्रीय क्रांति पार्टी) बना ली। कल्याण ने 2004 में फिर भाजपा में फिर वापसी की लेकिन बात बनी नहीं। 2009 में फिर मनमुटाव शुरू हो गया तो उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया। इसके बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह से उनका याराना काफी चौंकाने वाला था। 2013 में एक बार फिर उनकी घर वापसी हुई। 2014 में उन्होंने जमकर भाजपा का प्रचार किया। केंद्र में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही वह राजस्थान के राज्यपाल बना दिए गए।
दोस्तों के दोस्त, दुश्मनों के दुश्मन
Kalyan Singh, राजनीति में दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन माने जाते थे। बात को दिल में दबाकर रखने में यकीन नहीं करते थे। एक बार राज्यपाल रहते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सार्वजनिक रूप से तारीफ कर वह घिर भी गए1 2019 के चुनाव से पहले सांसद सतीश कुमार गौतम के खिलाफ बोलने पर भी सवाल उठा। संवैधानिक पद पर होने के चलते कई राजनीतिक दलों ने उनके बयान का विरोध किया। मामला, राष्ट्रपति तक भी पहुंचा लेकिन कल्याण टस से मस नहीं हुए।
आरएसएस से हमेशा अच्छे रहे सम्बन्ध
Kalyan Singh का आरएसएस से हमेशा अच्छा रिश्ता रहा। भाजपा के पुराने नेताओं से भी उनकी खूब पटरी बैठती थी। उनके लिए लखनऊ राजनीति का केंद्र बिंदु रहा। वह जब भी लखनऊ में होते उनके यहां मिलने-जुलने वालों का तांता लगा रहता था। कल्याण सिंह से मिलना काफी आसान था। वह घर आए लोगों से दिल खोलकर बात करते थे। उनके नाती संदीप सिंह भी यूपी में मंत्री हैं।
राममंदिर निर्माण का पूरा हुआ सपना
Kalyan Singh के पूरे जीवन संघर्ष में राममंदिर आंदोलन की बड़ी भूमिका रही। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में बाबरी ढांचा विध्वंस हुआ। उन्हें अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। हिन्दुत्ववादी नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले कल्याण सिंह अक्सर कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए उन्होंने कारसेवकों पर गोली नहीं चलने दी। बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद पूरी दुनिया में कल्याण सिंह को एक कट्टर हिन्दुत्ववादी नेता के रूप में पहचाना जाने लगा था। यह संयोग ही था कि उनके मुख्यमंत्री रहते बाबरी ढांचा विध्वंस हुआ और जब राममंदिर निर्माण मार्ग प्रशस्त हुआ तो वह दो-दो राज्यों के राज्यपाल बन चुके थे। राममंदिर निर्माण के रूप में कल्याण सिंह ने अपना सपना पूरा होता देखा। राज्यपाल पद से उनके रिटायरमेंट के समय राम मंदिर मुद्दा गरमाया हुआ था। कोर्ट में राम जन्मभूमि को लेकर सुनवाई हो रही थी। तीन महीने बाद इसका फैसला और अब राममंदिर निर्माण जोरों पर है।