उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री Kalyan Singh का 89 साल की उम्र में शनिवार को लखनऊ के पीजीआई में निधन हो गया। दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल रह चुके Kalyan Singh की सियासत की डगर पर रफ्तार बहुत तेज रही न बहुत धीमी। वह 35 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। मौका मिला तो अपने क्षेत्र के अलावा प्रदेश की राजनीति में भी सक्रिय नज़र आने लगे। अतरौली में कल्याण ने ऐसा झंडा गाड़ा कि 1967 में पहला चुनाव जीतने के बाद 1980 तक उन्हें कोई चुनौती ही नहीं दे सका। लेकिन 1980 के चुनाव में जनता पार्टी टूट गई तो कल्याण सिह को हार का सामना करना पड़ा।
दरअसल, कल्याण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में आए थे। जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हे रामनरेश यादव की सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। 1980 में कल्याण पहली बार चुनाव हारे लेकिन उसी साल 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ तो Kalyan Singh को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया। उन्हें प्रदेश पार्टी की कमान भी सौंप दी गई।
इसी बीच अयोध्या आंदोलन की शुरुआत हो गई जिसमें उन्होंने गिरफ्तारी देने के साथ ही कार्यकर्ताओ में नया जोश भरने का काम किया। इस आंदोलन के दौरान ही उनकी इमेज रामभक्त की बन गई। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ और जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसमें कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। इस तरह विधायक बनने के ठीक 24 वें साल 59 साल की उम्र में कल्याण सिंह यूपी के सीएम बन गए। हालांकि उनकी सरकार के दौरान ही बाबरी ढांचा विध्वंस हो गया तो इसका सारा दोष अपने ऊपर लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
कल्याण की अगुवाई में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा
बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद
कल्याण सिंह बड़े हिंदुत्ववादी नेता बन गए। मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चलाने से इनकार करने वाले कल्याण सिंह को इस मामले में अदालत ने एक दिन की प्रतीकात्मक सजा भी दी थी। कल्याण सिंह की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अनेक आयाम छुए। 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अलीगढ़ के अतरौली और एटा की कासगंज सीट से विधायक निर्वाचित हुये। इन चुनावों में भाजपा कल्याण सिंह के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनाई और उत्तर प्रदेश विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने।
पार्टी से नाराज हुए कल्याण, मुलायम के दोस्त बने
इसके बाद 2007 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भी भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़ा। लेकिन भाजपा को इसमें कोई बडी सफलता नहीं मिल सकी। 2009 में कल्याण सिंह भाजपा से फिर नाराज हो गए तो उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। मुलायम सिंह की पार्टी के समर्थन से उस चुनाव में वह एटा से निर्दलीय सांसद चुने गये। लेकिन उस चुनाव में मुलायम सिंह यादव की पार्टी को बडा नुकसान हुआ। उनका एक भी मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका। पार्टी में कलह हुई तो मुलायम सिंह ने कल्याण से नाता तोड़ लिया।
राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी का गठन
इसके बाद Kalyan Singh ने राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी का गठन किया। यह पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव में कुछ विशेष नहीं कर सकी। एक बार फिर 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी हुई तो 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा का खूब प्रचार किया। भाजपा ने अकेले अपने दम पर यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 71 लोकसभा सीटें जीतीं। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो कल्याण सिंह को सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने फिर से भाजपा की सदस्यता ले ली थी। पिछले काफी समय से वह अस्वस्थ चल रहे थे।