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रविवार, 4 सितंबर 2022

हिन्दी के राष्ट्र भाषा नहीं होने का असली कारण उसके चिंतन का दोषः राम बहादुर राय


वाराणसी। आज एक अहम सवाल है कि हिन्दी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं है। इसका असली कारण भारतीय भाषा के चिंतन के दोष में है। 75 सालों में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को उनका स्थान नहीं मिला तो इसके लिए लोगों की सोच उत्तरदायी है। स्पष्ट है कि हम जिस भाषा में सोचेंगे अपने विचारों को लिखने-बोलने में वहीं भाषा सहयोगी साबित होगी। तो हमें प्राथमिक तौर पर अपनी सोच में हिन्दी को मजबूत करने की जरूरत है।

यह बातें इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के अध्यक्ष एवं बहुभाषी संवाद समिति हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक राम बहादुर राय ने राष्ट्रीय एकात्मता और भारतीय भाषाएं विषयक संगोष्ठी में कही। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय सभागार में आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अथिति वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा कि भारत में भाषाओं की विभिन्नताओं के बावजूद एक समानता देखने को मिलती है, जो अन्य देशों में देखने को नहीं मिलती।



उन्होंने कहा कि 20वीं सदी के उत्तरार्ध में यह अवधारणा आई कि भारत एक भाषायी क्षेत्र है। भारत की हर भाषा एक दूसरे से जुड़ी है, इसीलिए सम्प्रेषण में कोई समस्या नहीं आती। उन्होंने आगे कहा कि हिन्दी ने राष्ट्रीय भाषा न होने के बावजूद अन्य भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया और स्वयं भी उनसे प्रभावित हुई क्योंकि सभी भाषाएं परस्पर रूप से समान और जुड़ी हुई हैं। हिन्दी में लचीलापन और उदारता है, इसी वजह से वह अन्य भाषाओं से जुड़ने में सहायक होती है।


राम बहादुर राय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को लेकर कहा कि वाराणसी का निर्माण वरुणा नदी और असि नदी के नाम पर हुआ है। लेकिन दुखद है कि आज असि नदी विलुप्त प्राय है। उन्होंने कहा कि लोगों को प्रधानमंत्री से अनुरोध करना चाहिए कि 140 से 150 किमी तक असि नदी के अस्तीत्व को लेकर प्रयास करें। इससे पर्यटन बढ़ेगा और भारतीय भाषाओं का विकास भी होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना करते हुए कहा कि यशस्वी शब्द उनके लिए छोटा है, वो अवतारी पुरुष हैं। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल भाई कोठारी ने कहा कि मां, मातृभूमि और मातृभाषा का विकल्प नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि भाषा अनेक है लेकिन देश एक है, संस्कृति एक है और भाव भी एक है। भारत में भाषाओं की विभिन्नता के बावजूद भाव सभी को एकरूप बनाए रखता है। हम अक्सर दूसरे की भाषा समझने में त्रुटियां कर सकते हैं लेकिन भाव को हम सही समझते हैं।


विशिष्ट अतिथि वाराणसी शहर दक्षिणी विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी ने कहा कि राष्ट्रीय एकात्मता और भारतीय भाषाएं विषय काशी के अनुकूल है। यहां परस्पर एकात्मता का भाव देखने को मिलता है। विभिन्न भाषा के लोगों का एक साथ गलियों में निवास से काशी में वशिष्ट की स्थिति बनती है। इससे पहले, मृनाल-आनंद एवं पंकज द्वारा शास्त्रीय गायन किया गया। इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चारों के बीच दीप प्रज्वलन एवं हिन्दुस्थान समाचार के संस्थापक व पुनरोद्धारक के चित्रों एवं महामना मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। वहीं, मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय, मुख्य वक्ता अतुल कोठारी एवं अन्य अतिथियों को पुष्प गुच्छ, अंगवस्त्रम और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया। इस दौरान युगवार्ता एवं नवोत्थान के विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दुस्थान समाचार समूह के अध्यक्ष अरविंद मार्डीकर ने की। मंच संचालन वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी जी ने किया।

इनका हुआ सम्मान

संगोष्ठी में भारतीय भाषा सम्मान से सम्मानित विद्वानों में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्याय के वरिष्ठ अर्चक डॉ श्रीकांत मिश्र (संस्कृत), डॉ. लहरी राम मीणा (हिंदी), उर्दू भाषा के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक लईक रिजवी (उर्दू), प्रो. कृष्णकांत शर्मा (असमिया), काशी हिन्दू विवि में मराठी विभाग के प्रोफेसर डॉ संदीप ज्योतिराम भूयेकर (मराठी), दयाराम नागवानी (सिंधी), डॉ करमा सोनम पामलो (भोटी), प्रो. बिंदु लाहिड़ी (बांग्ला), डॉ. मंगलागौरी वी राव (कन्नड़), डॉ के. शशि कुमार (मलयालम), डॉ शारदा सुंदरी (तेलुगू), डॉ. गोवनामणि धनराज (तमिल), सुनील दत्त वशिष्ठ (पंजाबी), गौतम कुमार झा (मैथिली), डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी (नेपाली), प्रो. मृत्युंजय मिश्र (उड़िया) और कृष्ण मुरारी राय (भोजपुरी) शामिल रहे। वहीं गुजराती भाषा के लिए अतुल भाई कोठारी जी को भारतीय भाषा सम्मान से सम्मानित किया गया।

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