UP में दो साल से नहीं हो पाया OBC आयोग का गठन, अध्यक्ष समेत सभी 28 पद खाली
प्रतीकात्मक तस्वीर
यूपी में दो वर्ष से पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन ही नहीं हो पाया है। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष समेत सभी 28 पद रिक्त चल रहे हैं। वहीं पिछड़े वर्ग के लोगों की शिकायतों का अंबार बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन, उन्हें कोई समाधान नहीं मिल पा रहा है।
पिछड़े वर्ग में शामिल जातियों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस आयोग का गठन किया गया है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण संबंधी शिकायतों की सुनवाई आयोग करता है।
आरक्षण के नियमों का पालन न होने पर संबंधित विभाग को नोटिस देना और अनुपालन सुनिश्चित कराना आयोग का मुख्य काम है। विभिन्न जातियों को ओबीसी में शामिल करने या उससे बाहर करने संबंधी आवेदनों पर भी आयोग विचार करता है।
इस संबंध में सरकार को अपनी सिफारिश देने का अधिकार भी आयोग के पास है। पिछड़े वर्ग के सदस्यों के साथ उत्पीड़न या अत्याचार की घटनाओं, हत्या और बलात्कार के मामलों पर भी आयोग विचार करता है।
अगर कहीं पीड़ित आवेदक को न्याय नहीं मिलता है तो उसके लिए संबंधित विभाग को आयोग निर्देश भी देता है। इतना ही नहीं गड़बड़ करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति भी आयोग के अधिकार क्षेत्र में आती है।
हर साल छात्रवृत्ति, शुल्क प्रतिपूर्ति, निराश्रित पेंशन, शादी अनुदान और आवास संबंधी शिकायतें भी आयोग में बड़ी मात्रा में आती हैं। आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, वर्तमान में करीब 7 हजार से ज्यादा शिकायती पत्र आयोग में पेंडिंग पड़े हैं।
इसकी मुख्य वजह है आयोग में कोई सुनवाई करने वाला ही नहीं है। योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद अप्रैल 2017 में तत्कालीन अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा ने त्यागपत्र दे दिया था।
आयोग में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 25 सदस्यों के पद हैं, लेकिन मौजूदा समय में इनमें से किसी भी पद पर कोई तैनात नहीं है। इसी का नतीजा है कि पिछड़ी जातियों के लोगों को समुचित न्याय नहीं मिल पा रहा है।