Lok Sabha चुनाव 2019 : राष्ट्र में Modi-Rahul तो महाराष्ट्र में Sharad Pawar की अग्निपरीक्षा

पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अभिलाष अवस्थी के मुताबिक, पहले शरद पवार ने खुद चुनाव न लड़ने की घोषणा करके एक तरह से अपने आप को बचाव की मुद्रा में ला दिया था। लेकिन अब जिस तरह पवार फ्रंट फुट पर आकर खेल रहे हैं और राज ठाकरे के जरिए जिस तरह मोदी-शाह की जोड़ी और फडनवीस सरकार पर हमले हो रहे हैं, उससे संकेत मिलता है कि जमीन पर पवार की रणनीति कारगर हो रही है। लेकिन भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला इससे सहमत नहीं हैं।
शुक्ला कहते हैं कि जमीन पर सरकार के खिलाफ कोई लहर नहीं है। शुक्ला के मुताबिक, मतदान का कम प्रतिशत होना भी भाजपा के लिए परेशानी की बात नहीं है। उनका दावा है कि भाजपा शिवसेना गठबंधन कम से कम 40 सीटें जीतेगा। तो दूसरी तरफ मुंबई कांग्रेस के उपाध्यक्ष जाकिर भाई कहते हैं कि यह चुनाव 2014 से पूरी तरह अलग है। लोगों का भाजपा और नरेंद्र मोदी से मोह भंग हो चुका है, इसलिए मतदान में गिरावट आई है। इस सरकार से नाराज तबके के लोग अपनी नाराजगी मतदान में शामिल होकर व्यक्त कर रहे हैं।
जाकिर के मुताबिक, महाराष्ट्र की हर सीट पर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सत्ताधारी गठबंधन को कड़ी टक्कर दे रहा है और इस बार लोग भाजपा-शिवसेना को सबक सिखाएंगे। राज्य में चार चरणों में हुए लोकसभा चुनावों में भले ही बालाकोट बनाम बेरोजगारी, प्रज्ञा ठाकुर बनाम हेमंत करकरे, राष्ट्रवाद बनाम आर्थिक सवाल, मजबूत और निर्णायक सरकार बनाम पानी संकट और प्याज-टमाटर के भाव से नाराज किसान, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस बनाम नोटबंदी और जीएसटी की मार के मुद्दे भले ही टेलीविजन की बहसों और अखबारों के पन्नों पर छाए रहे हों, लेकिन चुनावी मैदान में असली मुकाबला दोनों खेमों के नेताओं की शतरंजी चालों और अपने अपने प्रभाव क्षेत्रों और जनाधार में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने की कोशिशों के बीच है।
केंद्र और राज्य में भाजपा-शिवसेना गठबंधन सत्ता में है और इसका जहां उसे फायदा मिला है कि नौकरशाही पर उसका नियंत्रण है। संसाधनों में वह अपने विरोधियों पर भारी है और विपक्षी खेमे में सेंधमारी के लिए उसके पास दलबदलुओं को देने के लिए बहुत कुछ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेहद भरोसेमंद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने लोकसभा चुनावों से पहले ही कांग्रेस और एनसीपी में सेंधमारी का दांव चला। विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे को भाजपा में मिलाकर फडनवीस ने कांग्रेस को हिलाकर रख दिया। जिला स्तर और राज्य स्तर के कई और नेताओं ने भी पाला बदल करके कांग्रेस एनसीपी गठबंधन का मनोबल तोड़ने का माहौल बनाया।
भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के बाद राज्य के अंबेडकरवादी दलितों का राज्य सरकार और भाजपा से बढ़ी नाराजगी का फायदा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन उठा पाता कि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अंबेडकर) के नेता और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने एमआईएम नेता असउद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन करके राज्य की सभी 48 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करके कांग्रेस एनसीपी को परेशानी में डाल दिया।
राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे भी भाजपा-शिवसेना विरोधी वोटों के बंटवारे की भाजपा रणनीतिकारों की भूमिका मानते हैं। हालांकि प्रकाश अंबेडकर और ओवैसी ने इसे पूरी तरह बेबुनियाद बताया लेकिन कांग्रेस-एनसीपी ने इसे पूरे राज्य में फैलाकर इस दलित मुस्लिम गठबंधन की साख और असर को कमजोर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
दूसरी तरफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने पहले कांग्रेस एनसीपी के साथ गठबंधन करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन बाद में उन्होंने रणनीति बदल दी। राज ने बिना किसी भी सीट पर मनसे उम्मीदवार को उतारे भाजपा-शिवसेना के विरोध और कांग्रेस एनसीपी के समर्थन में प्रचार का फैसला किया। पहली बार किसी चुनाव में नेताओं के भाषण के साथ पॉवर प्वाइंट वीडियो प्रेजेन्टेशन तकनीक का इस्तेमाल राज ठाकरे ने अपनी जनसभाओं में किया, जिसने लोगों का जबर्दस्त ध्यान अपनी ओर खींचा और राज ठाकरे की सभाओं में उमडी भीड़ ने सत्ताधारी गठबंधन को चिंता में डाल दिया।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा-शिवसेना के खिलाफ यह शरद पवार की पॉवर रणनीति है। शरद पवार के इस ब्रह्मास्त्र ने विरोधियों के चुनाव अभियान की धार कुंद कर दी है। पवार और राज ठाकरे की नजदीकी जगजाहिर है। शुरुआत में राज ठाकरे को गंभीरता से न लेने वाले भाजपा-शिवसेना गठबंधन को आखिरकार ठाकरे के भाषणों और आरोपों का जवाब देने के लिए भाजपा के तमाम बड़े नेताओं को खुद मैदान में उतारना पड़ा।