बजट 2019 : निवेश और खर्च बढ़ाने की जरूरत
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण - फोटो : bharat rajneeti
बजट सरकार की आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है, सिर्फ घोषणाएं नहीं होती हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि बजट भाषण में आंकड़े नहीं दिए गए हैं कि कहां से कितना राजस्व आएगा और उसे किन-किन मदों में कितना-कितना खर्च किया जाएगा। बजट में तो आंकड़े दिए गए होंगे, लेकिन बजट भाषण में उसका जिक्र नहीं किया गया। शायद वित्त मंत्री को लगा होगा कि इससे बाजार पर गलत असर पड़ेगा, इसलिए आंकड़ों का बजट भाषण में खुलासा नहीं किया गया।
बजट की मुख्य बातों में कहा गया है कि अनुमानित जीडीपी के बढ़ने की रफ्तार 12 फीसदी होगी, जबकि आज वह बढ़ रही है कोई आठ फीसदी की रफ्तार से। इसका मतलब है कि हमने अर्थव्यवस्था के विकास का अनुमान कुछ ज्यादा ही लगा लिया है। उस वजह से राजस्व में बढ़ोतरी का अनुमान भी ज्यादा कर लिया। तो अगर राजस्व में उतनी बढ़ोतरी नहीं होगी, जितना बजट में बताया जा रहा है, तो फिर हम खर्च घटा देंगे, क्योंकि राजकोषीय घाटा को 3.3 फीसदी पर बनाए रखने का लक्ष्य रखा गया है। जब हम खर्च घटा देते हैं, तो जो जरूरी खर्च हैं, उन्हीं में ज्यादा कटौती होती है। ऐसे में अर्थव्यवस्था को जो फायदा होना चाहिए था, वह नहीं मिलेगा। अगर हमें अपनी अर्थव्यवस्था को आगे ले जाना है, तो खर्च बढ़ाने की जरूरत है। खर्च हम तभी बढ़ा सकते हैं, जब हमारे पास राजस्व के साधन हों। उसके लिए जीएसटी में फेरबदल नहीं किया जा सकता, प्रत्यक्ष कर में ही कुछ फेरबदल किया जा सकता था। लेकिन प्रत्यक्ष कर में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है, जिससे राजस्व बढ़ाया जा सकता था।
पेट्रोल-डीजल पर सेस बढ़ाया गया है, लेकिन उससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। कुछ चीजों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई है, उससे भी महंगाई बढ़ेगी। तो निम्न और मध्य वर्ग को विभिन्न योजनाओं (हाउसिंग आदि में) के जरिये फायदा पहुंचाने की जो बात की जा रही है, उसे भी उतना फायदा नहीं पहुंचेगा। जैसे हाउसिंग के ब्याज पर छूट दी गई है, पर घर तो लोग रोज खरीदते नहीं हैं और जो घर खरीदेगा, उसी को फायदा होगा, बाकी आम जनता को तो महंगाई बढ़ने से नुकसान ही होगा।
आम जनता को तो फायदा तभी मिलेगा, जब विकास दर बढ़ेगी, मुद्रास्फीति कम होगी। सरकार पचास खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का दावा कर रही है, लेकिन सवाल उठता है कि यह कैसे होगा। अगर आज हमारी वास्तविक विकास दर 5.8 फीसदी है, तब तो ऐसा होना संभव नहीं लगता। सरकार ने एक अजीब व्यवस्था बताई है कि वह आठ फीसदी वास्तविक विकास दर रखेगी और चार फीसदी मुद्रास्फीति की विकास दर रखेगी, तो इस तरह विकास दर बारह फीसदी हो जाएगी, तो हम पचास खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।
अगर हमें अपनी अर्थव्यवस्था को दोगुना करना है, तो हमें यह कहना चाहिए कि आज दो लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था है और हम इसे 375 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि सरकार ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। यह बहुत अवास्तविक लक्ष्य है। इस बजट में कई तरह की घोषणाएं की गई हैं, लेकिन उसमें विजन की कमी है। जैसे शिक्षा के क्षेत्र में कहा गया कि हम युवाओं को हुनरमंद बनाएंगे, जिससे कि वे विदेश जा सकें।
अब कौन सी उन्नत या बड़ी अर्थव्यवस्था अपनी प्रतिभा का निर्यात करती है! अब किसानों की आय दोगुनी करने की बात करें, तो वह भी संभव नहीं लग रहा। अभी तो खेती में संकट का दौर है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को लागू करना पड़ेगा, जो अभी तक ढंग से लागू नहीं होता। ऐसी घोषणाओं के लिए एक ठोस उपाय होना चाहिए।