रोजगार बढ़ाने के मुद्दे पर खामोशी : बजट भाषण तथ्यों के लिहाज से बहुत स्पष्ट नहीं था
बजट पेश करतीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण - फोटो : bharat rajneeti
वित्त मंत्री के बजट भाषण का पूरे देश को इंतजार रहता है, क्योंकि उसी के जरिये देश की अर्थव्यवस्था की सेहत का पता चलता है। इस लिहाज से देखें, तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण लंबा होने के बावजूद तथ्यों के लिहाज से बहुत स्पष्ट नहीं था। अर्थशास्त्रियों और आर्थिक विश्लेषकों को भाषण से ज्यादा अर्थव्यवस्था से जुड़े ठोस तथ्यों की जानकारी चाहिए होती है। वित्त मंत्री के बजट भाषण का 70 फीसदी हिस्सा पिछले साल की आर्थिक उपलब्धियों पर केंद्रित था।
मौजूदा वित्त वर्ष के बारे में बाकी 30 फीसदी बातें उन्होंने कहीं, लेकिन उनमें भी आवंटनों का कोई जिक्र ही नहीं था। जबकि आवंटन ही सबसे महत्वपूर्ण होता है। मुश्किल यह भी है कि सरकार की उपलब्धियों को ही बजट भाषण में ज्यादा जगह दी गई। वित्त मंत्री ने शौचालय निर्माण के क्षेत्र में सरकार की सफलता का जिक्र किया। इसमें कोई शक नहीं कि शौचालय निर्माण और खुले में शौच से मुक्ति की दिशा में सरकार का कामकाज बेहद उल्लेखनीय है। आखिर स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान देकर ही कोई देश आगे बढ़ सकता है। लेकिन बेरोजगारी के बारे में बजट में ज्यादा कुछ नहीं कहा गया। ऐसे ही वित्त मंत्री ने बैंकों की गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में कमी आने की बात कही, लेकिन इस बारे में बहुत खुलकर कुछ नहीं कहा। बजट में उच्च शिक्षा को महत्व देने की बात कही गई। यह अच्छी बात है, क्योंकि उच्च शिक्षा की ठोस बुनियाद ही रोजगार समेत दूसरे क्षेत्रों में हमारी स्थिति मजबूत करती है।
बजट भाषण में इसका हवाला दिया गया कि दुनिया भर के 200 बेहतरीन उच्च शिक्षा संस्थानों में तीन हमारे उच्च शिक्षा संस्थान हैं, जिनमें दो आईआईटी हैं और एक बंगलूरू का बेहद प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) है। लेकिन दो सौ में मात्र तीन हमारे संस्थानों का होना गर्व से ज्यादा चिंता की बात है। करोड़ों की युवा आबादी में इन तीन संस्थानों से निकले कुछ हजार युवाओं से भला कितना बदलाव आएगा?
अब शोध का स्तर सुधारने के लिए एक कमेटी के गठन की बात कही गई है। जबकि सच कहें, तो कमेटियों के गठन की सूचना से ही मुझे डर लगता है, क्योंकि इससे सार्थक कुछ होता नहीं। इस कमेटी में सरकार के लोगों का वर्चस्व होगा और अकादेमिक क्षेत्र के लोगों को कम महत्व दिया जाएगा। ऐसे में, क्या नतीजा निकलेगा, इस बारे में अनुमान लगाना कठिन नहीं है। यह बजट इतना तो बताता ही है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार कोई बहुत सुखद स्थिति में नहीं है।
रोजगार बढ़ाना समय का तकाजा है, लेकिन उसके लिए बजट कोई व्यापक अवसर मुहैया नहीं कराता। ढांचागत क्षेत्र में निवेश बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा, पर वह काफी नहीं है। कृषि क्षेत्र पिछले कुछ समय से परेशानियों से गुजर रहा है। इस बजट में ग्रामीण उद्योग में 75,000 हुनरमंद उद्यमी तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन एमएसमई क्षेत्र के लिए 350 करोड़ रुपये का आवंटन बहुत ही कम है।
सरकार ने इस साल सौ करोड़ रुपये से अधिक के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। लेकिन विनिवेश सरकार के चाहने भर से नहीं होता। जिस पर ओएनजीसी और एयर इंडिया के हाल को देखते हुए यह लक्ष्य पूरा होना और कठिन लगता है। बीमार और बदतर कंपनियों का विनिवेश करने के लिए नियम और शर्तों में बदलाव करने पड़ते हैं। लेकिन सरकार की ओर से विनिवेश के मोर्चे पर ऐसी गंभीरता अभी तक तो नहीं देखी गई है।