Rajneeti News: रोहिंग्या मसला : क्या अवैध घुसपैठियों को माना जा सकता है शरणार्थी? सुप्रीम कोर्ट करेगा परीक्षण
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) - फोटो : bharat rajneeti
अवैध घुसपैठियों को शरणार्थी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? यह सवाल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को अगस्त में फाइनल सुनवाई के जरिए इस मसले का परीक्षण करने का निर्णय लिया।
पीठ दो रोहिंग्या मुस्लिमों समेत दर्जनों अन्य लोगों की तरफ से अवैध रूप से भारत में घुसे 40 हजार रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने के केंद्र सरकार के फैसले खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। बता दें कि म्यांमार के पश्चिमी रखाइन राज्य में हिंसा के बाद बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम वहां से भागकर अवैध तरीके से भारत में घुसकर जम्मू, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में बस गए हैं।
चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस अनिरुद्ध बोस की मौजूदगी वाली पीठ के सामने केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा। मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता की प्राथमिक अर्जी अपना प्रस्तावित निर्वासन (डिपोर्टेशन) को रोकने के लिए है। मेहता ने कहा, पहले यह तय होना चाहिए कि क्या वे शरणार्थी हैं। क्या अवैध घुसपैठियों को शरणार्थी का दर्जा दिया जा सकता है? यह मूल सवाल है। इसके बाद पीठ ने इस मामले का परीक्षण करने का निर्णय लेते हुए सभी पक्षकारों को सुनवाई की अगली तारीख से पहले कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए कहा है।
दोनों याचिकाकर्ता यूएन से घोषित हो चुके हैं शरणार्थी
इस मामले के दो याचिकाकर्ता रोहिंग्या मोहम्मद सलीमउल्लाह और मोहम्मद शाकिर संयुक्त राष्ट्र के हाई कमीशन ऑफ रिफ्यूजीज (यूएनएचसीआर) के पास शरणार्थी के तौर पर पंजीकृत हो चुके हैं। इन दोनों ने 2017 में शीर्ष अदालत में भारत सरकार के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि भारत सरकार का उन्हें वापस म्यांमार भेजने का निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन व निजी आजादी का अधिकार) और अनुच्छेद 51 सी के खिलाफ है। संविधान के तहत कोई व्यक्ति देश का नागरिक हो या नहीं, उसके जीवन और आजादी की रक्षा करना राज्य का दायित्व है।