चिदंबरम राजीव से दोस्ती के चलते राजनीति में आए, ड्रीम बजट से छाए
पी चिदंबरम - फोटो : bharat rajneeti
खास बातें
- 1969 और 1984 में जब कांग्रेस दो धड़ों में विभाजित हुई तो चिदंबरम ने इंदिरा गांधी की वफादारी चुनी
- एक साल के बाद वह 13 दलों की संयुक्त सरकार में वित्त मंत्री बने
- चिदंबरम कांग्रेस से ज्यादा दिन दूर नहीं रहे और एक बार फिर से वापसी की
- कांग्रेस के इन दिग्गजों पर भी गिर सकती है गाज
वित्त मंत्री से लेकर गृह मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके पी चिदंबरम कभी देश का ‘ड्रीम बजट’ पेश कर चर्चा में थे, मगर अब आईएनएक्स मीडिया मामले में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद वह चर्चा में हैं। कभी जो सीबीआई उनके आदेशों पर काम करती थी, उसी एजेंसी के अफसरों ने उन्हें दीवार फांदकर घर से गिरफ्तार किया।
मद्रास के बड़े औद्योगिक घराने में जन्मे चिदंबरम ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया, लेकिन पारिवारिक कारोबार की बजाय राजनीति का रुख किया। 1960 के दौर में कट्टर वामपंथी के तौर पर राजनीति शुरू करने वाले पी. चिदंबरम बाद में आर्थिक प्रगतिशीलता की राह पकड़ ली। बाद के दौर में वह ऐसे उदारवादी बने कि उन्होंने अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश को आमंत्रित किया। 1967 में वह कांग्रेस में तब शामिल हुए, जब तमिलनाडु की सत्ता से कांग्रेस बाहर हो गई थी। 1969 और 1984 में जब कांग्रेस दो धड़ों में विभाजित हुई तो चिदंबरम ने इंदिरा गांधी की वफादारी चुनी। इसी दौर में वह गांधी-नेहरू परिवार के करीब होते चले गए। इसके बाद वह राजीव गांधी सरकार में वाणिज्य राज्य मंत्री बने, जहां उनकी राजीव से दोस्ती गहरा गई। यही नहीं नरसिम्हा राव के कार्यकाल में भी वह मंत्री रहे। हालांकि पार्टी की ओर से गठबंधन को लेकर किए गए फैसले के विरोध में वह कांग्रेस छोड़ गए और 1996 में नए दल का गठन किया। एक साल के बाद वह 13 दलों की संयुक्त सरकार में वित्त मंत्री बने। उस दौरान उन्होंने देश का ‘ड्रीम बजट’ किया, जिसके बारे में कहा जाता है कि उससे भारत में कर के के दायरे को बढ़ाने में मदद मिली थी। यह बजट ऐसे दौर में आया था, जब किसी भी तरह के आर्थिक सुधार को गरीब विरोधी करार दिया जाता था। हालांकि चिदंबरम कांग्रेस से ज्यादा दिन दूर नहीं रहे और एक बार फिर से वापसी की।
इंदिरा-राजीव से हुए प्रभावित
इंदिरा गांधी सरकार में 1969 में कांग्रेस के विभाजन, बैंकों के राष्ट्रीयकरण और राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स बंद करने को लेकर चिदंबरम बहुत प्रभावित हुए। वे इंदिरा का बहुत आदर किया करते थे। 1984 में जब राजीव गांधी को इंदिरा ने राजनीति में ढालने की कोशिश की तो उसी दौरान उनकी चिदंबरम से एक एयरपोर्ट पर मुलाकात हुई।
उस समय पहली बार चुनाव लड़ने से पहले हुई इस मुलाकात में चिदंबरम ने राजीव को प्रभावित किया। चिदंबरम जब राजीव गांधी कैबिनेट में थे तब उन्होंने कई सुधार किए जिनमें से एक सरकारी कर्मचारियों को शनिवार को छुट्टी देने की परंपरा की शुरुआत करना था।
हर्षद मेहता घोटाले में नाम आने पर देना पड़ा था इस्तीफा
नरसिम्हा राव सरकार के दौरान हर्षद मेहता घोटाला सामने आया। बाजार गिरा और अर्थव्यवस्था चरमरा गई। उस दौरान हर्षद मेहता ने जिन कंपनियों में पैसे लगाए थे उनमें से कुछ कंपनियों में चिदंबरम की पत्नी ने भी पैसे लगाए थे। उन्होंने इसकी जानकारी प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को दी और कहा कि वह इस्तीफा देने को तैयार हैं, लेकिन इस बातचीत के बाद वह जैसे ही घर पहुंचे उन्हें टीवी से इसकी जानकारी मिली कि उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है।
इस प्रकरण से चिदंबरम और नरसिम्हा राव के संबंधों में गहरी खटास आ गई। इसके बाद चुनाव का समय आया। उस सयम तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके साथ चुनाव लड़ा करती थीं लेकिन नरसिम्हा राव ने बूटा सिंह को एआईएडीएमके की प्रमुख जयललिता से बात करने के लिए नियुक्त किया। इससे वहां के कांग्रेसी बेहद नाराज हुए।
तब चिदंबरम और जीके मूपनार ने एक अलग पार्टी तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) का गठन किया और विधानसभा चुनावों में भारी जीत दर्ज की। टीएमसी और डीएमके ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन मूपनार के देहांत के बाद टीएमसी बिखर गई और चिदंबरम की कांग्रेस में वापसी हुई।
मनमोहन सरकार में रहे वित्त और गृह मंत्री
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की दोनों सरकारों में वह वित्त मंत्री और गृह मंत्री जैसे अहम पदों पर रहे। 2004 से 2008 तक वह वित्त मंत्री रहे थे, जबकि दिसंबर 2008 से जुलाई 2012 तक गृह मंत्री रहे। 2012 में फिर गृह मंत्री बने और 2014 तक इस पर पद पर रहे। चिदंबरम ने 2014 में अपनी परंपरागत शिवगंगा सीट से चुनाव नहीं लड़ा, जहां से वह लगातार 7 बार लोकसभा पहुंचे थे।
कांग्रेस के इन दिग्गजों पर भी गिर सकती है गाज
सोनिया- राहुल
नेशनल हेराल्ड केस में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी समेत कई कांग्रेस नेता फंसे हैं। आरोप है कि कांग्रेस के पैसे से 1938 में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी खड़ी की गई, जो नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज नाम के तीन अखबारों का संचालन करती थी। एक अप्रैल 2008 को सभी अखबार बंद हो गए। इसके बाद कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को इसकी 90 करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने जिम्मे ले लिया था।
यानी पार्टी ने इसे 90 करोड़ का लोन दे दिया। इसके बाद 5 लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल की 38-38 फीसदी हिस्सेदारी है। बाद में घालमेल कर यंग इंडियन के कब्जे में एजेएल कंपनी को कर दिया गया। इसके बाद कांग्रेस ने 90 करोड़ का लोन भी माफ कर दिया।
यानी ‘यंग इंडियन’ को मुफ्त में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी का मालिकाना हक मिल गया। इस मामले में कोर्ट में याचिका देने वाले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप है कि यह सब दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 1600 करोड़ रुपये की बिल्डिंग पर कब्जा करने के लिए किया गया।
शशि थरूर
अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत को लेकर लंबे समय से शशि थरूर जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं। हाल ही में सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में आरोप तय करने के लिए बहस हुई। राउज एवेन्यू की विशेष अदालत में बहस के दौरान अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि सुनंदा पुष्कर के शरीर पर चोट के 15 निशान थे। पुलिस ने थरूर पर सुनंदा को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया, जिसने उन्हें आत्महत्या को मजबूर किया।
रॉबर्ट वाड्रा
सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा पर भी मानेसर और बीकानेर जमीन घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उनसे लगातार पूछताछ होती रहती है। इसके अलावा, मई 2019 में प्रवर्तन निदेशालय ने वाड्रा को मनी लॉन्ड्रिंग केस में समन जारी किया था। मामला वाड्रा की 19 लाख पाउंड की विदेशी संपत्ति के स्वामित्व और टैक्स चोरी के लिए स्थापित की गई अघोषित संस्थाओं से संबंधित है।
डीके शिवकुमार
कर्नाटक में दिग्गज कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति दर्ज करने का मामला चल रहा हैं। डीके शिवकुमार के 64 ठिकानों पर आयकर विभाग ने 2017 में जबर्दस्त छापेमारी की थी।
वीरभद्र सिंह
आय से अधिक संपत्तियों के मामले में हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के खिलाफ भी मामला चल रहा है। सीबीआई ने कई बार उनसे पूछताछ भी की है।
अशोक गहलोत
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भी एंबुलेंस घोटाला में नाम चल रहा है। इस मामले में गहलोत के अलावा राजस्थान के कई अन्य नेताओं के खिलाफ भी 2014 मामला दर्ज किया गया था।
हरीश रावत
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी सीबीआई के निशाने पर हैं जिनपर फ्लोर टेस्ट से पहले बागी विधायकों को समर्थन के लिए घूस की पेशकश करने का आरोप है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा
वहीं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी सीबीआई स्पेशल कोर्ट में पेश होते रहते हैं। उन पर एजेएल भूमि आवंटन में अनियमितता करने और मानेसर भूमि घोटाला का आरोप है।